SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समग्र संस्कृति का सृजन कि तुम गालियां देना शुरू कर दो। क्योंकि वह तो फिर नपी-तुली बात होगी। अब परमहंस होने लगे ! इसलिए गालियां देने लगो कि इससे परमहंस हो जाएंगे, तो फिर चूक गए। फिर सादगी से चूक गए। मैं तुमसे इतनी ही बात कह रहा हूं कि जैसा है, सरलता से ... । तुम जैसे हो, अच्छे-बुरे, गोरे- काले, ऐसा ही खोल दो अपने को । इससे अन्यथा दिखलाने की चेष्टा नहीं होनी चाहिए। मैं जैसा हूं, दुनिया मुझे वैसा ही जाने। इसका नाम सादगी । सादगी गैर-नपी-तुली दशा है। सिद्धांत का उससे कुछ लेना-देना नहीं है। पांचवां प्रश्न ः मैं आपसे कुछ भी पूछते डरता हूं, क्योंकि लोग अगर मेरे प्रश्न सुनेंगे, तो हंसेंगे। जब प्रश्न ही पूछने की हिम्मत नहीं, तो उत्तर कैसे झेल पाओगे ! और पूछोगे नहीं, तो उत्तर कैसे पाओगे? और लोग हंसेंगे, तो हंसने दो। इतनी सादगी तो जीवन में लाओ ! प्रश्न तुम्हारे भीतर है; जैसा भी है । लोग हंसेंगे ही न, तो हंसने दो। मैं तुमसे कहता हूं : जो समझदार हैं, वे समझेंगे। जो नासमझ हैं, वे हंसेंगे। लाओत्सू का प्रसिद्ध वचन है कि जो समझदार हैं, वे समझेंगे। जो नासमझ हैं, वे हंसेंगे। क्यों? समझदार क्यों समझेगा ? क्योंकि समझदार समझेगा कि यह प्रश्न तुम्हारा ही थोड़े ही है, उसका भी है। वह भी नहीं पूछ पाया है । वह भी रोके रखा बैठा रहा है। वह तो तुम्हें धन्यवाद देगा कि जो मैं नहीं पूछ सका, तुमने पूछ लिया । मैं डरा रहा, तुमने पूछ लिया । जो नासमझ है, मूढ़ है, वही हंसेगा। क्योंकि मूढ़ को यह पता नहीं है कि यही प्रश्न उसका भी है। आदमी आदमी के प्रश्नों में बहुत भेद थोड़े ही है। आदमी आदमी की तकलीफों में, परेशानियों में भेद थोड़े ही है ! क्या तुम पूछ सकते हो, जो दूसरे आदमी का सवाल नहीं होगा? मैंने हजारों सवालों के जवाब दिए हैं। मैंने हर सवाल को हर आदमी का सवाल समझा है। अब तक मुझे ऐसा कभी नहीं दिखायी पड़ा कि यह सवाल किसी एक का विशिष्ट है। मुश्किल है, संभव ही नहीं है । क्या पूछोगे ? एक से तो रोग हैं। काम है; लोभ है; क्रोध है; मोह है। एक से तो रोग हैं, तो एक से ही प्रश्न होंगे। थोड़ा मात्राओं का भेद होगा। किसी में लोभ की मात्रा थोड़ी ज्यादा; और किसी में क्रोध की मात्रा थोड़ी कम; और किसी में मोह 199
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy