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________________ एस धम्मो सनंतनो जैसा होना चाहिए । यही पत्रकारिता है। अब मुझसे जो निकल गया था क्रोध में, उसको छापने की कोई जरूरत ही नहीं थी । तुमने ठीक किया। इतना बोध होना चाहिए पत्रकार को । बोलने वाले को बोध नहीं है; पत्रकार को बोध होना चाहिए ! और स्वभावतः स्वामी आनंद का दिल गदगद हो गया - जब उन्होंने कंधा ठोंका और कहा कि तुम महान पत्रकार हो । 1 मैंने कहा : तुमने कभी दूसरा काम किया? उन्होंने कहा: क्या? कि गांधी ने गाली न दी हो और तुमने गाली जोड़ दी होती । क्योंकि पहली बात भी गलत है; उतनी ही गलत, जितनी दूसरी गलत है। जो कहा था, वह वैसा का वैसा छपना चाहिए था। यह तो तुमने झूठ किया ! इसमें से तुमने गालियां निकाल दीं; गांधी खुश. हुए। गालियां जोड़ देते, तो गांधी नाराज होते। गांधी ने बेहोशी की। यह सादगी नहीं है। यह नपी-तुली राजनीति है । और तुम प्रभावित हो गए, क्योंकि तुम्हें बहुत... तुम्हारे अहंकार को बड़ी तृप्ति मिली कि गांधी जैसे व्यक्ति ने और कहा कि तुम महान पत्रकार हो; ऐसा ही पत्रकार होना चाहिए । फिर तुम उनके भक्त हो गए । फिर तुमने इसी तरह की काट-छांट जिंदगीभर की होगी ! उन्होंने कहा : बात तो ठीक है । फिर दुबारा मुझे नहीं मिले ! फिर मुझसे नाराज हो गए होंगे, क्योंकि मैंने सीधी बात कह दी। जैसी थी, वैसी की वैसी कह दी कि तुम्हारे अहंकार को गांधी ने मक्खन लगा दिया। उन्होंने तुम्हें खरीद लिया। मैं अगर उनकी जगह होता, तो मैं तुमसे कहता कि तुम ठीक पत्रकार नहीं हो। क्योंकि मैंने जो गालियां दी थीं, उनका क्या हुआ ? इस तरह झूठी प्रतिमाएं खड़ी होती हैं। अब दुनिया कभी नहीं जानेगी कि गांधी ने गालियां दी थीं। अब गांधी की जो प्रतिमा लोगों की नजर में रहेगी, वह झूठी प्रतिमा होगी। - गांधी ने तो ऐसे ही कहा होगा - गुजराती थे; इससे ज्यादा वजनी गाली दे नहीं सकते — लेकिन रामकृष्ण तो मां-बहन की गाली देते थे ! मगर किताबों में उल्लेख नहीं है। मगर वे सीधे-सादे आदमी थे, गांव के जैसे आदमी होते हैं । किताबें नहीं लिखतीं उनको; क्योंकि किताबें कैसे लिखें उनको! नहीं तो परमहंस का क्या होगा ? लेकिन मैं तुमसे कहता हूं कि वे गाली देने के कारण ही परमहंस थे । सरल थे। अब जो आदमी उनको जैसा लगा, उसको उन्होंने वैसा ही कहा । उसमें फिर रत्तीभर फर्क नहीं किया। वे परिष्कृत साधु नहीं थे - परमहंस थे । मर्यादित साधु नहीं थे— परमहंस थे। अब कोई आदमी चोर है, तो उसको उन्होंने चोर कहा। और कोई आदमी उनके सामने बैठा था और पास में बैठी स्त्रियों को देख रहा था, तो उसको उन्होंने गंदी गाली दी। उसको उन्होंने कहा कि तू जो कर रहा है...। मैं इसको सरलता कहता हूं; सादगी कहता हूं। मैं तुमसे यह नहीं कह रहा हूं 198
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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