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समग्र संस्कृति का सृजन ___ मैंने कहाः वे सरल हैं। मगर यह सादगी महात्मा गांधी वाली सादगी नहीं है-वह महिला महात्मा गांधी की भक्त है-यह सरलता है। ____ मैंने उस महिला को कहा : तुम इतना तो मानोगी कि कृष्णमूर्ति में उतनी तो बुद्धि होगी ही, जितनी तुममें है? इतना तो मानती हो? उनको भी घर से चलते वक्त यह खयाल आ सकता था कि मैं, इतना प्रतिष्ठित ज्ञानी, प्रबुद्ध पुरुष, टाई खरीदने जाऊंगा; लोग क्या सोचेंगे! और अगर रुक गए होते, तो वह चालबाजी होती; वह पाखंड होता। फिर उस दुकान में भरे बाजार में खड़े थे, कोई चोर की तरह कहीं किसी स्मगलर के घर में घुसकर तो टाई नहीं खरीद रहे थे। बीच बाजार में खरीद रहे थे। छोटा सा गांव, वहां कम से कम छह हजार लोग इकट्ठे हुए थे कृष्णमूर्ति को सुनने; वे सब वहीं थे गांव में। इन सब भक्तों के सामने खरीद रहे थे! इतना खयाल नहीं आया होगा कि यहां छह हजार मेरे भक्त ठहरे हैं; लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे कि मैं टाई खरीद रहा हूं! घर भी बुला ले सकते थे। बंद दरवाजा करके टाई चुन ले सकते थे। उधर आईना भी होता; सुविधा भी होती। भक्त भी न खोते; कोई नुकसान भी न होता! मगर यह न किया। सरलता, सादगी...।
और यह जो तल्लीनता छोटे बच्चे की तरह; जैसे छोटा बच्चा खिलौनों में खो जाए, ऐसे टाई में खो गए! यह सहजता, और तू वापस लौट आयी! तू नदी के किनारे से वापस लौट आयी?
तू महात्मा गांधी की सादगी जानती है; वही अड़चन है। वह नपी-तुली सादगी थी। गांधी एक-एक काम करते थे, तो नपा-तुला करते थे; उसका परिणाम क्या होगा, यह सोचकर करते थे। यह सादगी नहीं है, जहां परिणाम का हिसाब है। क्या कहूं? कौन से शब्द का उपयोग करूं? पत्र कैसा लिखा जाए? क्या लिखा जाए? इस पर भारी विचार करते थे! कई दफा पत्र को सुधारते थे; बदलते थे। जो वक्तव्य दे देते थे, उसमें भी बदलाहट कर लेते थे।
उनके एक भक्त स्वामी आनंद ने मुझे कहा...। एक रात मेरे पास रुक गए। फिर तो मुझसे इतना घबड़ा गए कि फिर कभी आए नहीं। उन्होंने कहा कि... । ऐसी ही बात चली। वे गांधी के पुराने भक्त। शुरू-शुरू गांधी जब भारत आए, तब से उनके साथ थे। तो उन्होंने मुझसे कहा कि मुझ पर तो ऐसी छाप पहले ही दिन पड़ गयी गांधी की कि उनका हो गया सदा के लिए। मैंने कहाः हुआ क्या?
गांधी अफ्रीका से आए थे और अहमदाबाद में पहली दफा बोले। और उन्होंने अंग्रेजों को गालियां दीं। लुच्चे, लफंगे—इस तरह के कुछ शब्द उपयोग किए होंगे।
और मैं रिपोर्टर था किसी पत्र का। तो मैंने सोचा : ये शब्द देने ठीक नहीं हैं। क्योंकि इससे गांधी की प्रतिष्ठा को नुकसान पड़ेगा। तो मैंने वे सब शब्द अलग कर दिए। और वक्तव्य ठीक साफ-सुथरा करके छापा।
दूसरे दिन गांधी ने मुझे बुलाया। मेरे कंधे को ठोंका और कहाः पत्रकार तुम
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