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एस धम्मो सनंतनो
अब यह हो सकता है कि माता जी गांधीवादी रही हों। तो मेहमानों का तो स्वागत किया होगा। मेहमानों का लोग स्वागत करते हैं कि भले आए। धन्यभाग। कितने दिन राह दिखायी! आंखें थक गयीं। पलक-पांवड़े बिछाए रहे। आओ, पधारो। और सुबह कहा हो बेटे के सामने कि इन कमबख्तों को भी आज ही मरना था?
जैसे-जैसे तुम बड़े होते हो, तुम चालबाज होते जाते हो। उसी चालबाजी में सादगी खो जाती है। और सादगी का बड़ा अदभुत आनंद है। लेकिन मैं यह नहीं कह रहा हूं कि सादगी से स्वर्ग मिलेगा। मैं कह रहा हूं: सादगी स्वर्ग है। __गांधी की सादगी सादगी नहीं है। बहुत नपा-तुला राजनैतिक कदम है। नपा-तुला! गांधी का महात्मापन नपा-तुला कूटनीतिक कदम है। ___मैं सिद्धांतों का पक्षपाती नहीं हूं। जीवन जैसा है, उसे जीओ। उसे निष्कपट भाव से जीओ। उसे भविष्य की आकांक्षा से नहीं, उसे अतीत की आदत से नहीं; उसे कुछ पाने के हेतु से नहीं-जैसा है, उसे चुपचाप जीओ। ___शायद दुनिया तुम्हें महात्मा न भी कहे। क्योंकि महात्मा धोखेबाजों को कहती है दुनिया। शायद दुनिया तुम्हें महात्मा न कहे, क्योंकि तुम पाखंडी-नहीं होओगे। पाखंडियों को महात्मा कहती है दुनिया। शायद दुनिया तुम्हें गिने ही नहीं किसी गिनती में। मगर गिनवाना ही क्या है। गिनवाना क्यों?
तुम वही कहो, जो तुम्हारे हृदय में उठता है। और तुम वैसे ही जीयो, जैसा तुम्हारे हृदय में उठता है। ऐसी बच्चों जैसी सादगी में सिद्धांत नहीं होता सादगी का। __ एक महिला ने मुझे कहा कि वह कृष्णमूर्ति के एक शिविर में भाग लेने हालैंड गयी। सांझ का वक्त था; वह बाजार में घूमने निकली थी कि बड़ी हैरान हो गयी। आध्यात्मिक महिला है। अब तो कई लोग उस महिला के शिष्य भी हैं। उसे तो बड़ा धक्का लगा। धक्का इस बात से लगा कि कृष्णमूर्ति एक कपड़ों की दुकान में टाई खरीद रहे थे। अब महात्मा और टाई खरीदें! यह तो भारतीय-बुद्धि को जंच ही नहीं सकता। और न केवल टाई खरीद रहे थे, बल्कि उन्होंने सारी दुकान की टाई बिखेर रखी थीं! ये नहीं जंच रही; ये नहीं जंच रही-गले से लगा-लगाकर सबको देख रहे थे।
वह महिला थोड़ी देर खड़ी देखती रही। उसका तो सारा भ्रम टूट गया कि यह आदमी तो बिलकुल सांसारिक आदमी है! सांसारिकों से भी गया-बीता है! उसने तो शिविर में शिविर के लिए ही हालैंड गयी थी—बिना भाग लिए वापस लौट आयी। ___ वापस लौटी थी, ताजी ही क्रुद्ध; मुझसे मिलना हो गया। उसने कहा कि हद्द हो गयी! आप कृष्णमूर्ति की ऐसी प्रशंसा करते हैं! मैंने अपनी आंख से जो देखा है, वह आपसे कहती हूं कि वे एक टाई की दुकान पर टाई खरीद रहे थे। और न केवल खरीद रहे थे, उन्होंने सारी टाई फैला रखी थीं। और बिलकुल तल्लीन थे! मैं खड़ी रही वहां पंद्रह मिनट। वे बिलकुल लीन थे।
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