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समग्र संस्कृति का सृजन है नग्न होना, कोई आगे का मोक्ष नहीं। आगे का मोक्ष तो वणिक का हिसाब है; मन का हिसाब है-और! और! तुम्हें नग्न होना अच्छा लगता है...।
तो मैं तुमसे यह कहना चाहता हूं तुम्हें बहुत चौंक होगी इस बात से—कि अमरीका के समुद्र तटों पर अगर कोई नग्न स्नान कर रहा है, वह ज्यादा सादा है, बजाय तुम्हारे नग्न दिगंबर मुनि के। क्यों? क्योंकि वह नग्नता में आनंद ले रहा है। और तुम्हारा जैन मुनि नग्नता में सिर्फ पुण्य कमा रहा है, ताकि आगे मोक्ष में जाकर आनंद ले। इसके भीतर जाल है गणित का। वह जो अमरीका के समुद्र तट पर नहाने वाला पुरुष या स्त्री नग्न होकर आनंद ले रहा है धूप का, समुद्र की लहरों का, हवा का—वह ज्यादा सादा है; वह ज्यादा सीधा है; वह ज्यादा साधु है।
तुम्हें मेरी बात अड़चन में डाल देती है, क्योंकि तुम्हारे पास बंधी हुई धारणाएं हैं। तुम कहते होः यह तो हद्द हो गयी! तो आप ये जो नग्न क्लब हैं पश्चिम में, इनकी सादगी को ज्यादा मानते हैं, बजाय बेचारे दिगंबर मुनि की इतनी कठोर तपश्चर्या के! - कठोर तपश्चर्या है, इसीलिए सादा नहीं मानता। उसके पीछे हिसाब है।
वह जो नंगा दौड़ रहा है, वृक्षों के साथ खेल रहा है, पशुओं के साथ...। सादा है। छोटे बच्चे जैसा है। सादगी होनी चाहिए छोटे बच्चे जैसी।
भतीजा बोलाः चाची जी, जन्मदिवस पर आपने जो भेंट दी थी, उसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
चाची जी ने कहा ः बेटे, उसमें धन्यवाद की क्या बात है!
भतीजे ने कहाः वैसे मेरी भी यही राय है। लेकिन मम्मी ने कहा, फिर भी धन्यवाद तो देना ही चाहिए।
यह सादगी। यह सीधा-सादापन है।
रात्रि के भोजन के समय घर आए विशिष्ट मेहमानों के साथ मेजबान दंपत्ति भी अपने आठ वर्षीय पुत्र के साथ भोजन कर रहे थे कि उनके पुत्र ने कमीज की बांह से अपनी नाक पोंछी।
सुबह नाश्ते के समय मैंने तुमसे कुछ कहा था बेटे? याद है न? मेजबान महिला ने बच्चे का ध्यान नाक पोंछने के गलत तरीके की ओर दिलाया।
हां, मम्मी! याद है। बच्चे ने कहा। क्या कहा था? मम्मी ने पूछा।
बच्चा मेहमानों की ओर देखते हुए बोला : आपने कहा था कि इन कमबख्तों को भी आज ही मरना था।
यह सादगी। इसमें कोई गणित नहीं, कोई हिसाब नहीं; जैसा है, वैसा है।
सादगी होनी चाहिए छोटे बच्चों जैसी। और ऐसी सादगी ही साधुता है। जब तुम वैसे ही हो बाहर, जैसे तुम भीतर हो।
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