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________________ एस धम्मो सनंतनो वह नाती-पोतों की जो बैंक में थैली बड़ी होती जाती थी, वह बंद हो गयी। अब तुम क्या कहोगे, यह सादगी की वजह से दो-ढाई सौ रुपया खर्च किया था? यह बचाने के लिए। यह कंजूसी थी। और यह चोरी भी थी। यह गांधीवादी सादगी है! सिद्धांत से सादगी जब भी आएगी, चालबाज होगी, चालाक होगी। तुमने शायद सरोजिनी नायडू का प्रसिद्ध वचन न सुना हो! सरोजिनी नायडू गांधी के निकटतम लोगों में एक थी; अत्यंत आत्मीय लोगों में एक थी। एक वचन बहत प्रसिद्ध है सरोजिनी नायडू का कि लोगों को पता नहीं है कि इस बूढ़े आदमी को गरीब रखने के लिए हमें कितना खर्च करना पड़ता है! गांधी की गरीबी बड़ी महंगी गरीबी थी! वे दूध तो बकरी का पीते थे, लेकिन बकरी का भोजन तुम्हें पता है ? काजू-किशमिश! ऊपर से दिखता है, बकरी का दूध पीते हैं बेचारे। वे चलते तो थर्ड क्लास रेल के डब्बे में थे, लेकिन पूरा डब्बा उनके लिए रिजर्व होता था। इससे फर्स्ट क्लास में चलना सस्ता है। जहां सत्तर आदमी चलते, वहां एक आदमी चल रहा है! यह सत्तर गुना खर्च हो गया! थर्ड क्लास से फर्स्ट क्लास में चार गुना फर्क होगा। यह सादगी-वादगी नहीं है। यह बड़ा होशियार हिसाब है। यह सब सिद्धांत की बातचीतें हैं। इन सिद्धांतों के कारण ऊपर से चीजें और दिखायी पड़ती हैं; भीतर कुछ और होती हैं। सरोजिनी नायड़ ने सही कहा है। सरोजिनी नायड़ ने कहा है कि अमीर से अमीर आदमी जितना खर्च करे, गांधी की गरीबी पर उससे ज्यादा खर्च करना पड़ता है! वह गरीबी महंगी है। मैं तुमसे सादगी को तो निश्चित ही कहूंगा कि अदभुत बात है सादगी। लेकिन सादगी सादी होनी चाहिए। सादगी चालबाज, गणित और तर्क और सिद्धांत पर खड़ी नहीं होनी चाहिए, नहीं तो महंगी हो जाएगी। फिर यह भी हो सकता है कि सादगी आर्थिक रूप से महंगी न हो। लेकिन अगर तुम्हारे भीतर किसी गणित पर खड़ी है, तो सादगी फिर भी नहीं हो सकती। जैसे जैन मुनि की सादगी सादगी नहीं है। क्योंकि वह यह सोच रहा है कि इस तरह सादे रहने से ही मोक्ष के सुख मिलेंगे। यह कोई सादगी न हुई। यह तो सौदा हुआ; सादगी कहां हुई! यह आदमी सादा रहने में आनंदित नहीं है। सादगी में इसका आनंद नहीं है। सादगी तो सिर्फ कुछ दिन की बात है, फिर तो स्वर्ग में मजा लेना है। जैन-शास्त्र कहते हैं : मोक्ष-रमणी का भोग करना है। मोक्ष-रमणी! मोक्ष में परम पद पर विराजमान होना है, इसलिए सादगी चल रही है। इसको तुम सादगी कहोगे? मैं उसको सादगी कहता हूं, जिसका आनंद उसमें ही हो। तुम्हें आनंदित लगता 194
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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