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________________ समग्र संस्कृति का सृजन राजेंद्र प्रसाद की सादगी की बड़ी चर्चा की जाती है कि वे राष्ट्रपति भवन में भी रहे, लेकिन ऐसे रहे, जैसे कि गरीब आदमी को रहना चाहिए। मैंने उनका कमरा देखा, जहां वे राष्ट्रपति भवन में रहे। उन्होंने क्या किया था! उसमें चारों तरफ चटाई चढ़वा दी थी अंदर। संगमरमर की दीवालों पर चटाई लगवा दी! महल के भीतर झोपड़ा बना लिया। अब मजे से उसमें रहने लगे। यह सादगी! तुम्हें झोपड़े में रहना हो, तो झोपड़ों की कोई कमी है इस देश में? फिर राष्ट्रपति भवन में किसलिए रह रहे हो? लेकिन आदमी बहुत पाखंडी है। रहना तो महल में है, मगर झोपड़े में रहने की सादगी भी नहीं छोड़ी जाती! और इसकी भी प्रशंसा की जाती है कि कैसी अदभुत सादगी! तुम जानकर हैरान होओगे कि जो सुविधाएं गवर्नर जनरल और वायसराय को मिलती थीं, वही सब राष्ट्रपति को मिली थीं। उसमें सबसे बड़ी सुविधा थी : हजारों रुपये महीने मनोरंजन पर राष्ट्रपति खर्च कर सकता था। लेकिन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने दो सौ, ढाई सौ रुपये महीने से ज्यादा कभी मनोरंजन पर खर्च नहीं किया। तो अखबारों में खबरें निकली थीं तब-कि कैसी सादगी! जब हजारों रुपये खर्च करने की सुविधा है, तब भी दो-ढाई सौ रुपये खर्च किए मनोरंजन पर। इसको कहते हैं गांधीवादी सादगी! लेकिन असलियत का तुम्हें पता है? असलियत का पता कभी अखबारों तक नहीं आ पाता। क्योंकि जो लोग शक्ति में होते हैं, अखबार उनका गुणगान करने में लगे रहते हैं। असलियत यह थी कि उन्होंने जो हजारों रुपये मनोरंजन पर खर्च करने थे, मनोरंजन पर तो दो-ढाई सौ रुपये महीने खर्च किए; वे हजारों रुपये उन्होंने अपने नाती-पोतों के नाम कर दिए-जो कि बिलकुल गैर-कानूनी है। वह मनोरंजन पर खर्च होने के लिए थी संपत्ति। अतिथि आते हैं राष्ट्रपति के, उनके स्वागत-सत्कार में खर्च होती। उसमें तो खर्च नहीं की; नाती-पोतों के नाम कर दिया। सालभर बाद नेहरू को पता चला। वे तो चकित हो गए कि यह तो हद्द हो गयी! यह तो बिलकुल गैर-कानूनी है। लेकिन अखबारों तक खबर यही पहुंची कि कैसी सादगी! दो-ढाई सौ रुपये महीने खर्च किए, जब कि करने की सुविधा हजारों थी। वे सब हजारों रुपये नाती-पोतों के नाम बैंक में चले गए! इसकी कोई चर्चा नहीं उठती। सिद्धांतवादी सादगी ऐसी ही चालाक होती है; ऊपर-ऊपर होती है। नेहरू को जाकर समझाना पड़ा राजेंद्र प्रसाद को कि यह तो बात बिलकुल ही गलत है। यह तो किसी वायसराय ने कभी नहीं की! मनोरंजन पर खर्च करते-ठीक था। उस पर तो खर्चा आपने किया नहीं। ठीक है; नहीं करना है, तो मत करिए। मगर यह तो हद्द हो गयी बात की। यह किस हिसाब से आपके नाती-पोतों के पास पहुंच गया पैसा? यह अब दुबारा नहीं होना चाहिए। कहते हैं कि राजेंद्र प्रसाद इसके लिए कई दिन तक नेहरू पर नाराज रहे। क्योंकि 193
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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