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एस धम्मो सनंतनो
उदाहरण के लिए डाक्टर राजेंद्र प्रसाद को लो। अब उनसे सादा आदमी कौन मिलेगा! एकदम सादे आदमी हैं और गांधी के निकटतम अनुयायियों में से हैं। इसलिए तो गांधी ने उन्हें भारत के प्रथम राष्ट्रपति होने के लिए चुना। नेहरू की इच्छा नहीं थी। नेहरू तो राजगोपालाचारी को चाहते थे। नेहरू तो चाहते थे कि कोई आदमी, जो कूटनीति समझता हो। नेहरू का मन राजेंद्र प्रसाद के लिए नहीं था। लेकिन गांधी जिद्द पर थे कि राजेंद्र प्रसाद! तो राजेंद्र प्रसाद प्रथम राष्ट्रपति बने।
तुम्हें पता है, पहला काम राजेंद्र प्रसाद ने क्या किया राष्ट्रपति भवन में जाकर? जिंदगीभर गांधी के पास बैठकर मंत्र दोहराया—अल्लाह ईश्वर तेरे नाम, सबको
सन्मति दे भगवान। और पहला काम क्या किया, तुम्हें पता है! राष्ट्रपति भवन में जितने मुसलमान नौकर थे, सब अलग कर दिए! यह गांधीवादी सादगी है!
ये बातें लिखी नहीं जाती, क्योंकि यहां तो प्रशंसा चलती है। बस, प्रशंसा का हिसाब है। अब ये बातें खबर देती हैं आदमी की असलियत का। क्यों मुसलमान नौकर अलग कर दिए गए ? मुसलमान नौकर अलग किए गए और उनकी जगह बुलाए कौन गए ? राष्ट्रपति भवन में बंदरों के आने की मनाही थी और उनको सिपाही भगा देते थे, क्योंकि बंदर उपद्रव करते; कूद-फांद मचाते।
अब ये राजेंद्र प्रसाद तो...शुद्ध हिंदूवाद इनके भीतर है। हनुमान जी के तो शिष्य हैं ये बंदर: उनकी संतान। दसरा काम उन्होंने जो किया, बड़ा महान कार्य, वह यह कि बंदरों को कोई रोक नहीं सकता। बंदर राष्ट्रपति भवन में मजे से घूमने लगे। बच्चों पर हमला करने लगे। स्त्रियों पर हमला करने लगे! और एक दिन तो वे नेहरू के कमरे में भी घुस गए। बामुश्किल उनको निकाला जा सका। और जाते-जाते एक बंदर, नेहरू का एक पेपरवेट, जो किसी ने भेंट किया था, वह ले गया। नेहरू ने सिर पर हाथ मार लिया और कहा, यह राजेंद्र बाबू की करतूत! __तुम जानकर हैरान होओगे कि राजेंद्र बाबू यह भी चाहते थे...विधान सभा के भी वे अध्यक्ष थे, उसमें भी उन्होंने दो दान किए विधान को। भारत को जो उन्होंने विधान दिया, उसमें जो विधान परिषद का अध्यक्ष था, उसकी देन दो। एकः गौ माता; और दूसरा बंदर वे चाहते थे। वह स्वीकार नहीं हुआ। गौ माता की रक्षा होनी चाहिए—यह भारत का असली सवाल! और यहां कोई सवाल नहीं है। __ दुनिया हंसती है इस देश की मूढ़ता पर। यहां इतने बड़े सवाल खड़े हैं! और जिस आदमी को विधान परिषद का अध्यक्ष बनाया, उसकी खोपड़ी में कुल इतना आया, ये दो बातें : कि एक तो गौ माता की रक्षा होनी चाहिए और दूसरे, हनुमान के वंशज बंदरों की रक्षा होनी चाहिए!
गौ माता को तो किसी तरह दूसरों ने भी कहा कि चलो, ठीक है, रख लो। इनका आग्रह। मगर बंदर तो जरा बर्दाश्त के बाहर है। अच्छा हुआ कि उन्होंने बंदर को विधान में नहीं जगह दी, नहीं तो दुनिया और हंसती। वैसे ही हम पर हंसती है।
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