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एस धम्मो सनंतनो
तनाव गया, चिंता गयी, फिक्र गयी । भविष्य गया, अतीत गया; यही क्षण सब कुछ है। तुम इसी में नाचते; इसी में खाते, इसी में पीते; इसी में सोते, इसी में जागते । यह क्षण सब कुछ है— वर्तमान । अतीत जाए, भविष्य जाए। स्वर्ग का द्वार यहीं खुल जाता है। इस क्षण में है स्वर्ग का द्वार ।
'कहते हैं लोग, आती है बहार भी कभी
लेकिन हमें खिजां के सिवा कुछ नहीं पता।'
बहार बाहर से नहीं आती। और खिजां भी बाहर से नहीं आती। वसंत भी भीतर से आता है; पतझड़ भी भीतर से आता है। तुम गलत ढंग से जी रहे हो, इसलिए तुम्हें पतझड़ के सिवा कुछ भी पता नहीं है। तुम ठीक से जीयो ।
ठीक से जीने के दो सूत्र हैं : ध्यान और प्रेम । ये दो जड़ें हैं; अगर ये मजबूती से तुम्हारे भीतर जम जाएं, तो तुम पाओगे, वसंत आ गया । वसंत आया ही हुआ था। वसंत सदा से आया हुआ है । अस्तित्व वसंत के सिवा और कुछ जानता ही नहीं ।
आज इतना ही।
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