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संन्यास की मंगल-वेला
भाव उठा है। घड़ी आ गयी। फल पक गया। अब मैं गिरना चाहता हूं। और आप में खो जाना चाहता हूं। जैसे फल भूमि में खो जाता है, ऐसे मुझे आत्मलीन कर लें। मुझे स्वीकार कर लें; मुझे अंगीकार कर लें।
ब्राह्मण नहीं आया है। बुद्ध उसके द्वार पर गए हैं। और इसलिए मैं फिर से तम्हें दोहरा दूं : इसके पहले कि शिष्य चुने, गुरु चुनता है। इसके पहले कि शिष्य को पता चले, गुरु को पता चलता है। शिष्य चुनेगा भी कैसे अंधेरे में भटकता हुआ! उसे कुछ भी तो पता नहीं है। वह तो अगर कुछ चुनेगा भी, तो गलत चुनेगा।
कल रात हालैंड से एक युवक संन्यास लेने आए। मैं देखता हूं कि निश्चय है। लेकिन उनको अभी निश्चय का पता नहीं है। वे मुझसे कहने लगे, मैं सोचूंगा। मैं विचार करूंगा। मैंने उनसे कहा ः तुम सोचोगे और विचार करोगे, तो गलत होगा। तुम्हारा सोचा हुआ कब सही हुआ? तुम्हारा विचारा हुआ कब सही हुआ? अब यहां आकर भी सोचोगे, विचारोगे! तो यहां आना हुआ ही नहीं। तुमने यात्रा हालैंड से यहां तक की व्यर्थ की। अब यहां सोचो-विचारो मत-देखो।
देखना अलग बात है। देखना गहरे में उतरना है। सोचना-विचारना अपनी अतीत स्मृतियों में जाना है। अतीत में गए कि चूके। क्योंकि तुम्हारा जो अचेतन है, वह अभी मौजूद है। यहीं डुबकी मारनी है।
सोचने-विचारने वाला आदमी ऐसा है, जैसा कोई पानी की सतह पर तैरता है। और देखने वाला आदमी ऐसा है, जैसे कोई पानी की गहराई में डुबकी मारता है-गोताखोर। गोताखोर बनो।
बुद्ध भिक्षाटन को जाते थे। उस ब्राह्मण के घर जाने का अभी कोई खयाल भी न था। लेकिन अचानक उन्हें दिखायी पड़ा कि उस ब्राह्मण के अचेतन में निश्चय हो गया है। संन्यास की किरण पहुंच गयी है।
एक दिन भगवान उसके निश्चय को देखकर...।
ध्यान रखना : बुद्ध जैसे व्यक्ति सोचते नहीं, देखते हैं। सोचना तो अंधों का काम है। आंख वाले देखते हैं। बुद्ध को दिखायी पड़ा। जैसे तुम्हें दिखायी पड़ता है कि वृक्ष के पत्ते हरे हैं। कि एक पीला पत्ता हो गया है; कि अब यह गिरने के करीब है। जैसे तुम्हें दिखायी पड़ता है कि दिन है; कि रात है कि सूरज निकला है; कि बादल घिर गए; कि वर्षा हो रही है—ऐसे बुद्ध को चैतन्य-लोक की स्थितियां दिखायी पड़ती हैं।
यह निश्चय पक गया। यह आदमी संन्यस्त होने की घड़ी के करीब आ गया। इसको इस पर ही छोड़ दो, तो पक्का नहीं है कि इसको अपने निश्चय का पता कब चले। जन्म-जन्म भी बीत जाएं। और जब चले भी, तब भी पता नहीं कि यह क्या व्याख्या करे। किस तरह अपने को समझा ले, बुझा ले। किस तरह वापस सो जाए, करवट ले ले। फिर सपनों में खो जाए।