________________
एस धम्मो सनंतनो
भावाविष्ट दशा है कि आपको सुन-सुनकर इस विचार में मोहित हो गयी हूं?
भाव उठ रहा है। पुराना मन कह रहा है: यह सिर्फ भावावेश है। यह असली भाव नहीं है; भाव का आवेश मात्र है! यह असली भाव नहीं है। यह तो सुनने के कारण; यहां के वातावरण में, इतने गैरिक वस्त्रधारी संन्यासियों को देखकर एक आकांक्षा का उदय हुआ है। ठहरो। घर चलो। शांति से विचार करो। कुछ दिन धैर्य रखो। जल्दी क्या है?
घर जाकर, शांति से विचार करके करोगे क्या? यह जो भाव की तरंग उठी थी, इसको विनष्ट कर दोगे। इसको भावावेश कहने में ही तुमने विनष्ट करना शुरू कर दिया। और मजा ऐसा है कि जब यह तरंग चली जाएगी, और तुम्हारे भीतर दूसरी बात उठेगी कि नहीं; संन्यास नहीं लेना है; तब तुम क्षणभर को न सोचोगे कि यह कहीं भावावेश तो नहीं!
यह आदमी का अदभुत मन है! तब तुम न सोचोगे कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि वापस घर आ गए; गृहस्थों के बीच आ गए; अब गैरिक वस्त्रधारी नहीं दिखायी पड़ते; अब ध्यान करते हुए मदमस्त लोग नहीं दिखायी पड़ते; अब वह वाणी सुनायी नहीं पड़ती; अब वह हवा नहीं है; और यहां बाजार, और कोलाहल, और घर, और घर-गृहस्थी की झंझटें; और सब अपने ही जैसे लोग-कहीं इस प्रभाव में संन्यास न लूं, यह भावावेश तो नहीं उठ रहा है? फिर नहीं सोचोगे। फिर एकदम राजी हो जाओगे कि यह असली चीज हाथ आ गयी! ____यह असली चीज नहीं हाथ आ गयी। यह तुम्हारी स्मृतियों से आया। तुम्हारे अतीत से आया; तुम्हारे अनुभव से आया। और अभी जो आ रहा है, वह तुम्हारे अनुभव से नहीं आ रहा है; तुम्हारे अतीत से नहीं आ रहा है। वह तुम्हारी गहराई से आ रहा है। और तुम्हारी गहराइयों का तुम्हें कुछ पता नहीं है।
पूछा है कि यह कहीं भावावेश तो नहीं है? आपने सच में मुझे पुकारा है?
अब समझो। अगर मैं कहूं कि हां, सच में मैंने तुम्हें पुकारा है; तो क्या तुम सोचते हो, और विचार नहीं उठेंगे कि पता नहीं, ऐसा मुझे समझाने के लिए ही तो नहीं कह दिया कि मैंने तुझे पुकारा है! इसकी सचाई का प्रमाण क्या कि वस्तुतः पुकारा है? कहीं सांत्वना के लिए तो नहीं कह दिया? कहीं ऐसा तो नहीं है कि मुझे संन्यास में दीक्षित करना था, इसलिए कह दिया हो?
विचार की तरंगें तो उठती चली जाएंगी। उनका कोई अंत नहीं है। विचार से इसलिए कभी कोई हल नहीं होता। ___ इस कहानी का जो पहला हिस्सा है, वह यह कि एक दिन भगवान उसके निश्चय को देखकर...।
अभी ब्राह्मण को निश्चय का कुछ पता नहीं है। ब्राह्मण को पता होता, तो ब्राह्मण स्वयं भगवान के पास आ गया होता। कि हे प्रभु! मेरे हृदय में भिक्षु होने का