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________________ संन्यास की मंगल-वेला घटनाओं में भी जीवन के बड़े रहस्य छिपे मिल जाते हैं। हीरों की खदानें भी तो कंकड़-पत्थर और मिट्टी में ही होती हैं-खोदना आना चाहिए। जौहरी की नजर चाहिए। तो कंकड़-पत्थर को हटाकर हीरे खोज लिए जाते हैं। इन छोटी-छोटी घटनाओं में बड़े हीरे दबे पड़े हैं। मैं यही कोशिश कर रहा हूं कि तुम्हें थोड़ी जौहरी की नजर मिले। तुम इनकी पर्ते उघाड़ने लगो। जितने गहरे उतरोगे, उतनी बड़ी संपदा तुम्हें मिलने लगेगी। श्रावस्ती में पंचग्र-दायक नामक ब्राह्मण था। वह खेत के बोने के पश्चात फसल तैयार होने तक पांच बार भिक्षुसंघ को दान देता था। एक दिन भगवान उसके निश्चय को देखकर भिक्षाटन करने के लिए जाते समय उसके द्वार पर जाकर खड़े हो गए। अभी ब्राह्मण को भी अपने निश्चय का पता नहीं है। उसके अंतस्तल में क्या उठा है, अभी ब्राह्मण को भी अज्ञात है। अभी ब्राह्मण को खयाल नहीं है कि उसके भिक्षु होने का क्षण आ गया। ___मनुष्य का बहुत छोटा सा मन मनुष्य को ज्ञात है। मनस्विद कहते हैं : जैसे बर्फ का टुकड़ा पानी में तैराओ, तो थोड़ा ऊपर रहता है, अधिक नीचे डूबा होता है। एक खंड बाहर रहता है, नौ खंड भीतर डूबे रहते हैं। ऐसा मनुष्य का मन है; एक खंड केवल चेतन हुआ है; नौ खंड अंधेरे में डूबे हैं। __तुम्हारे अंधेरे मन में क्या उठता है, तुम्हें भी पता चलने में कभी-कभी वर्षों लग जाते हैं। जो आज तुम्हारे मन में उठेगा, हो सकता है, पहचानते-पहचानते वर्ष बीत जाएं। और अगर कभी एक बार जो तुम्हारे अचेतन में उठा है, तुम्हारे चेतन तक भी आ जाए, तो भी पक्का नहीं है कि तुम समझो। क्योंकि तुम्हारी नासमझी के जाल बड़े पुराने हैं। तुम कुछ का कुछ समझो! तुम कुछ की कुछ व्याख्या कर लो। तुम कुछ का कुछ अर्थ निकाल लो। क्योंकि अर्थ आएगा तुम्हारी स्मृतियों से, तुम्हारे अतीत से। ___ तुम्हारी स्मृतियां और तुम्हारा अतीत उसी छोटे से खंड में सीमित हैं, जो चेतन हो गया है। और यह जो नया भाव उठ रहा है, यह तुम्हारी गहराई से आ रहा है। इस गहराई का अर्थ तुम्हारी स्मृतियों से नहीं खोजा जा सकता। तुम्हारी स्मृतियों को इस गहराई का कुछ पता ही नहीं है। इस गहराई के अर्थ को खोजने के लिए तो तुम्हें जहां से यह भाव उठा है, उसी गहराई में डुबकी लगानी पड़ेगी; तो ही अर्थ मिलेगा; नहीं तो अर्थ नहीं मिलेगा। कल किसी का प्रश्न था; इस संदर्भ में सार्थक है। नेत्रकुमारी ने पूछा है कि अब संन्यास का भाव उठ रहा है। प्रगाढ़ता से उठ रहा है। लेकिन एक सवाल है कि यह मेरा भावावेश तो नहीं है? आपने सच में मुझे पुकारा है? या यह केवल मेरी
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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