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________________ एस धम्मो सनंतनो तुम्हारी श्रद्धा दूसरे पर तभी होती है, जब तुम्हें आत्म-श्रद्धा होती है। तुम्हारी श्रद्धा उतनी ही होती है दूसरे पर, जितनी तुम्हारे भीतर होती है। जितनी तम्हें स्वयं पर होती है। जिस आदमी को अपने पर श्रद्धा नहीं है, उसको अपनी श्रद्धा पर भी कैसे श्रद्धा होगी? जिस आदमी को अपने पर श्रद्धा है, वही अपनी श्रद्धा पर श्रद्धा कर सकेगा। वहीं से सब चीजें शुरू होंगी। श्रद्धा पहले भीतर होनी चाहिए। ___एकलव्य अपूर्व रहा होगा। इसी श्रद्धा को देखकर ही तो द्रोण चौंके होंगे कि यह आदमी खतरनाक सिद्ध हो सकता है। इसकी आंखों में उन्हें झलक दिखायी पड़ी होगी, लपट दिखायी पड़ी होगी। लेकिन वे भूल में थे। जिसमें इतनी आत्म-श्रद्धा हो, उसे गुरु इनकार कर दे, तो भी वह पहुंच जाता है। और जिसमें इतनी आत्म-श्रद्धा न हो, गुरु लाख स्वीकार करे, तो भी कहां पहुंचेगा! ____ एकलव्य की खबरें आने लगीं कि एकलव्य पहुंच गया; पा लिया उसने अपने गंतव्य को। जिस गुरु ने एकलव्य को शिष्य बनाने से इनकार कर दिया था, वह दक्षिणा लेने पहुंच गया! __ बेईमानी की भी एक सीमा होती है! शर्म भी न खायी। चुल्लूभर पानी में डूब मरना चाहिए था द्रोण को। ऐसे शिष्य के पैर जाकर छूने चाहिए थे। लेकिन फिर राजनीति आती है; फिर चालबाजी आती है। __अब वे यह इरादा करके गए हैं कि जाकर उसके दाएं हाथ का अंगूठा मांग लूंगा। वे जानते हैं कि वह देगा। उसकी आंखों में उन्होंने वह झलक देखी है कि वह जान दे दे उन लोगों में से है। उसको शूद्र कहना तो बिलकुल गलत है। वह अर्जुन से ज्यादा क्षत्रिय है। वह इनकार नहीं करेगा, जो मांगूंगा। अगर गरदन मांगूंगा, तो गरदन दे देगा। क्योंकि खबरें आती थीं कि उसने आपकी मूर्ति बना ली है। मूर्ति के सामने अभ्यास करता है। द्रोण पहुंच गए। देखी उसकी निशानेबाजी, छाती कंप गयी। उनके सारे शिष्य फीके थे। वे खुद फीके थे। इस एकलव्य के मुकाबले वे कहीं नहीं थे। खुद भी नहीं थे। तो उनके शिष्य अर्जुन इत्यादि तो कहां होंगे! बहुत भय आ गया होगा। उससे कहा कि ठीक, तू सीख गया। मैं तेरा गुरु। मैं गुरु-दक्षिणा लेने आया। एकलव्य की आंखों में आंसू आ गए होंगे। उसके पास देने को कुछ भी नहीं है। गरीब आदमी है। उसने कहाः आप जो मांगें; जो मेरे पास हो, ले लें। ऐसे मेरे पास देने को क्या है! एकलव्य इसलिए भी अदभुत है कि जिस गुरु ने इनकार किया था, उस गुरु को दक्षिणा देने को तैयार है। और जो मांगे-बेशर्त! गुरु चालबाज है। कूटनीतिज्ञ है। शिष्य बिलकुल सरल और भोला है। और द्रोणाचार्य ने उसका अंगूठा मांग लिया-दाएं हाथ का अंगूठा। क्योंकि अंगूठा कट 184
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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