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________________ समग्र संस्कृति का सृजन उसका कारण है, इकतारा रखने का। एक की खबर देने के लिए एक तार रखते हैं। ईश्वर बहुतारा है। उसके बहुत तार हैं। बड़े रंग, बड़े रूप हैं। ईश्वर सतरंगा है, इंद्रधनुषी है। तुम अपने एकांगी आग्रहों को अगर न थोपो, तो तुम्हें जीवन में इतने रंग दिखायी पड़ेंगे! इतनी विविधता है जीवन में कि जिसका हिसाब नहीं। और इस विविधता में ही ऐश्वर्य है। इस विविधता में ही ईश्वर छिपा है। __ अगर ईश्वर इकतारा हो, तो उबाने वाला होगा। ऊब पैदा करेगा। रस चुकता ही कहां है जीवन का! कभी नहीं चुकता। ऊब कभी पैदा होती ही नहीं जीवन से। जिसको हो जाती है, उसने कुछ इकतारा ले रखा होगा। जिसने खुली आंखें रखीं और जीवन के सतरंगे रूप देखे; सब रूप देखे-शुभ और अशुभ, अच्छा और बुरा, प्रीतिकर-अप्रीतिकर-सब अंगीकार किया; मधुशाला से लेकर मंदिर तक जिसे सब स्वीकार है, ऐसा व्यक्ति ईश्वर के इंद्रधनुष को देखने में समर्थ हो पाता है। शराबी से लेकर साधु तक जिसे सब स्वीकार है...। क्योंकि हैं तो सब उसी के रूप। वह जो शराबी जा रहा है लड़खड़ाता हुआ, वह भी उसी का रूप है। और वह जो साधु बैठा है वृक्ष के शांत, मौन, एकांत में, वह भी उसी का रूप है। महावीर भी उसी के रूप हैं; और मजनू में भी वही छिपा है। इतनी विराट दृष्टि हो, तो समग्र संस्कृति पैदा हो सकती है। इसीलिए तो यहां जो एकांगी संस्कृति के लोग हैं, वे आ जाते हैं, उनको बड़ी अड़चन होती है। कभी-कभी कोई कम्युनिस्ट आ जाता है। वह मुझसे कहता है: और तो सब बात ठीक है, लेकिन आप अगर आत्मा, ईश्वर की बात न करें...। और सब बात ठीक है। ये उत्सव, ये नृत्य, ये सब ठीक हैं; मगर ईश्वर, परमात्मा को क्यों बीच में लाते हैं? अगर ये आप बीच में न लाएं, तो हम भी आ सकते हैं। पुराने ढब का साधु-संन्यासी भी कभी-कभी आ जाता है। वह कहता है और सब तो ठीक है; आप ईश्वर-आत्मा की जो बात करते हैं, वह बिलकुल जमती है। मगर यह नृत्य-गान, यह प्रेम की हवा, यह माहौल; ये युवक-युवतियां हाथ में हाथ डाले हुए चलते हुए, नाचते हुए, यह जरा जंचता नहीं! अगर यह आप बंद करवा दें, तो हम सब आपके शिष्य होने को तैयार हैं। ये एकांगी लोग हैं। इनमें से दोनों का मुझसे कोई संबंध नहीं बन सकता। यह जो प्रयास यहां हो रहा है, आज तुम्हें इसकी गरिमा समझ में नहीं आएगी। हजारों साल लग जाते हैं किसी बात को समझने के लिए। यह जो प्रयोग यहां चल रहा है, अगर यह सफल हुआ, जिसकी संभावना बहुत कम है; क्योंकि वे एकांगी लोग काफी शक्तिशाली हैं। उनकी भीड़ है। और सदियां उनके पीछे खड़ी हैं। अगर यह प्रयोग सफल हुआ, तो हजारों साल लगेंगे, तब कहीं तुम्हें दिखायी पड़ेगा कि क्या मैं कर रहा था। जब यह पूरा भवन खड़ा होगा...। अभी तो नींव भी नहीं भरी गयी है। मुझे दिखायी पड़ता है पूरा भवन कि अगर बन 181
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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