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एस धम्मो सनंतनो
है। द्वंद्व है। उन दोनों के बीच ही बच्चे का जन्म है। नया जीवन उन्हीं के बीच बहता है। जैसे नदी दो किनारों के बीच बहती है। ऐसे स्त्री-पुरुष के किनारों के बीच जीवन की नयी धारा बहती रहती है। ___परमात्मा को अकल होती, तो पुरुष ही पुरुष बनाता! अकल होती, तो स्त्रियां ही स्त्रियां बनाता। अगर शंकराचार्य को बनाना पड़े, तो वे एक ही बनाएंगे। मार्क्स को बनाना पड़े, वह भी एक ही बनाएंगे। ये दोनों अद्वैतवादी हैं। दोनों में कुछ भेद नहीं है। एक घोषणा करता हैः परमात्मा माया है; संसार सत्य है। एक घोषणा करता है : परमात्मा सत्य है; संसार माया है। मगर तर्क एक ही है।
___ जीवन को देखो जरा। यहां सब द्वंद्व पर खड़ा है। जन्म और मृत्यु साथ-साथ हैं। जुड़े हैं। उलटे हैं और जुड़े हैं! रात और दिन साथ-साथ हैं। गर्मी और सर्दी साथ-साथ हैं। उलटे हैं और जुड़े हैं। यहां तुम जहां भी जीवन को खोजोगे, वहीं तुम पाओगेः द्वंद्व मौजूद है। जीवन द्वंद्वात्मक है, डायलेक्टिकल है। ___मैं जीवन का पक्षपाती हं। जीवन जैसा है, वैसा तुम्हें खोलकर कह देता हूं। मुझे कोई जीवन पर सिद्धांत नहीं थोपना है। सिद्धांत हो, तो आदमी हमेशा ही सिद्धांत का पक्षपाती होता है। उसके सिद्धांत के अनुकूल जो पड़ता है, वह चुन लेता है; जो अनुकूल नहीं पड़ता, वह छोड़ देता है।
मेरा कोई सिद्धांत नहीं है। मेरी आंख कोरी है। मैं कुछ तय करके नहीं चला हूं कि ऐसा होना चाहिए। मेरे पास कोई तर्क नहीं है, कोई तराजू नहीं है। जीवन जैसा है, वैसा का वैसा तुमसे कह रहा हूं। और जीवन विरोधाभासी है, इसलिए मैं विरोधाभासी हूं। इसलिए मेरे वक्तव्य सब विरोधाभासी हैं। मैंने जीवन को झलकाया है। मैंने दर्पण का काम किया है। ___ अब तक समग्र संस्कृति पैदा नहीं हो सकी, क्योंकि दार्शनिकों के हाथ से संस्कृतियां पैदा हुई हैं। संस्कृति पैदा होनी चाहिए कवियों के द्वारा; और तब उनमें एक समग्रता होगी। सिद्धांतवादी कभी समग्र नहीं हो सकते। __ इसलिए मैं समस्त सिद्धांतों के त्याग का पक्षपाती हूं। छोड़ो सिद्धांतों को; जीवन को देखो। और जैसा जीवन है, वैसा जीवन है; इसको अंगीकार करो। इसी अंगीकार में गति है, विकास है। और इसी अंगीकार में तुम्हारे भीतर परम घटेगा। और वह परम दरिद्र नहीं होगा, दीन नहीं होगा।
शंकराचार्य का परम दरिद्र है। उसमें पदार्थ को झेलने की क्षमता नहीं है। वह पदार्थ को इनकार करता है। मार्क्स का परम भी गरीब है, दीन है, दरिद्र है। उसमें आत्मा को स्थान नहीं है।
मेरा परम, परम समृद्ध है। मैं इसीलिए उसे ईश्वर कहता हूं। ईश्वर से मेरा मतलब है : ऐश्वर्यवान। परम समृद्ध है। सब द्वंद्वों का मेल है।
ईश्वर इकतारा नहीं है; जैसा कि तुम्हारे साधु-संन्यासी इकतारा लिए घूमते हैं!
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