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समग्र संस्कृति का सृजन
फिर तुम एक पक्षी को उड़ते देखते हो। इसमें कुछ और ज्यादा है। पक्षी अगर तुम्हारे पास आ जाएगा, तो तुम पाओगे: इसमें कुछ और ज्यादा है। ज्यादा पास आने में डरता है। गुलाब का फूल नहीं डरता। तुम पकड़ने की कोशिश करो, पक्षी उड़ जाता है। गुलाब का फूल नहीं उड़ जाता। पक्षी की आंखें तुम्हारी तरफ देखती हैं, तो तुम जानते हो, इसके भीतर कुछ है, कोई है। ___ फिर एक मनुष्य है। जब तुम एक मनुष्य को देखते हो, तो तुम जानते हो ः देह ही सब कुछ नहीं है। भीतर गहराई है। इसकी आंखों में झांको, तो तुम्हें पता चलता है: देह ही नहीं है; आत्मा है। __ और फिर कभी एक बुद्ध जैसा व्यक्ति है, जिसके भीतर अनंत गहराई है कि तुम झांकते जाओ, झांकते जाओ और पार नहीं है। चट्टान में कुछ भी भीतर नहीं है। बुद्ध में भीतर-और भीतर-और भीतर। इस भीतर का नाम ही आत्मा है। यह जो भीतर का आयाम है, इसका नाम ही आत्मा है। ___ जो कहता है : मैं सिर्फ शरीर हूं, वह अपनी गहराई को इनकार कर रहा है। वह परेशानी में पड़ेगा। जो कहता है: मैं सिर्फ आत्मा हूं, वह अपने बाहर को इनकार कर रहा है। यह परेशानी में पड़ेगा। तुम बाहर-भीतर का मेल हो। और अपूर्व मेल घट रहा है तुम्हारे भीतर।
यही तो रहस्य है इस जगत का कि यहां विरोधाभास मिल जाते हैं; एक-दूसरे में डूब जाते हैं। यहां विरोधाभास आलिंगन करते हैं।
भारत नष्ट हुआ; होना ही था। अमरीका भी नष्ट हो रहा है; होना ही है। क्योंकि अब तक मनुष्य समग्र संस्कृति पैदा नहीं कर पाया। अब तक मनुष्य पूर्ण संस्कृति पैदा नहीं कर पाया—ऐसी संस्कृति जहां सब स्वीकार हो। जहां प्रेम भी स्वीकार हो और ध्यान भी स्वीकार हो।
खयाल रखना : ध्यान यानी आत्मा; ध्यान यानी भीतर जाने का मार्ग। और प्रेम यानी बाहर जाने का मार्ग। जब तुम प्रेम करते हो, तो किसी से करते हो। और जब ध्यान करते हो, तो सबसे टूट जाते हो; अकेले हो जाते हो। ध्यान यानी एकांत। जब तुम ध्यान में हो, तब तुम आंख बंद कर लेते हो। तुम बाहर को भूल जाते हो। तुम अपनी देह को भी विस्मृत कर देते हो। संसार गया। तुम अपने भीतर जीते हो; भीतर धड़कते हो। चैतन्य में और गहरे उतरते जाते हो।
जब तुम प्रेम में उतरते हो, तो अपने को भूल जाते हो; तब दूसरे पर आंख टिक जाती है। तुम्हारी प्रेयसी या तुम्हारा प्रेमी, तुम्हारा बेटा या तुम्हारी मां, तुम्हारा मित्र, जिससे तुम प्रेम करते हो, वही सब कुछ हो जाता है। सारी आंख उस पर टिक जाती है। तुम अपने को विस्मृत कर देते हो। स्व को भूल जाते हो, पर को याद करते हो प्रेम में। ध्यान में पर को भूल जाते हो; स्व को याद करते हो।
पूरब ने ध्यान की ऊंचाई पायी, प्रेम में चूक गया। प्रेम में चूक गया, तो पतन
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