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एस धम्मो सनंतनो
परमात्मा ने तुम्हें शरीर और आत्मा दोनों बनाया है। और तुम्हारे महात्मा तुम्हें समझा रहे हैं कि तुम सिर्फ आत्मा हो! लाख तुम्हारे महात्मा समझाते रहें कि तुम सिर्फ आत्मा हो, कैसे झुठलाओगे इस सत्य को जो परमात्मा ने तुम्हें दिया है कि तुम देह भी हो!
तुम्हारा महात्मा भी इसको नहीं झुठला पाता। जब भूख लगती है, तब वह नहीं कहता कि मैं देह नहीं हूं। तब चला भिक्षा मांगने! उससे कहो कि संसार माया है, कहां जा रहे हो? वहां है कौन भिक्षा देने वाला? भिक्षा की जरूरत क्या है? आप तो देह हैं ही नहीं। शिवोऽहं-आप तो शिव हैं; आप कहां जा रहे हैं? देह है कहां? देह तो सपना है। __ अगर महात्मा से यह कहोगे, तब तुम्हें पता चलेगा। महात्मा को भी भिक्षा मांगने जाना पड़ता है। भोजन जुटाना पड़ता है। सर्दी लगती है, तो कंबल ओढ़ना पड़ता है। और सब माया है! शरीर माया! कंबल माया! गर्मी लगती है, तो पसीना आता है, प्यास लगती है। बीमारी होती है, तो औषधि की जरूरत होती है।
यह महात्मा किस झूठ में जी रहा है जो कहता है कि शरीर माया है ? इससे बड़ा और झूठ क्या होगा?
और फिर दूसरी तरफ लोग हैं, जो कहते हैं कि शरीर ही सब कुछ है, आत्मा कुछ भी नहीं है। इनसे जरा पूछो कि जब कोई तुम्हें गाली दे देता है, तो तकलीफ क्यों होती है? पत्थर को गाली दो, पत्थर को कोई तकलीफ नहीं होती है। और जब कोई वीणा पर संगीत छेड़ देता है, तब तुम प्रफुल्लित और मग्न क्यों हो जाते हो? पत्थर तो नहीं होता मग्न और प्रफुल्लित! । __ तुम्हारे भीतर कुछ होना चाहिए, जो पत्थर में नहीं है, जो प्रफुल्लित होता है, मग्न होता है। सुबह सूरज को देखकर जो आह्लादित होता है। रात आकाश में चांद-तारों को देखकर जिसके भीतर एक अपूर्व शांति छा जाती है।
यह कौन है ? देह के तो ये लक्षण नहीं हैं। देह को तो पता भी नहीं चलता, कहां चांद; कहां सूरज! कहां सौंदर्य; कहां शांति!
तुम्हारे भीतर एक और आयाम भी है। तुम्हारे भीतर कुछ और भी है। __ऐसा समझो : चट्टान है। यह बाहर ही बाहर है। इसके भीतर कुछ भी नहीं है। तुम इसको कितना ही खोदो, इसके भीतर नहीं जा सकोगे। इसके भीतर जैसी चीज है ही नहीं। चट्टान तो बस बाहर ही बाहर है। ____फिर चट्टान के बाद गुलाब का फूल है। गुलाब में थोड़ा भीतर कुछ है। पखुड़ी ही पखुड़ी नहीं है। पखुड़ियों से ज्यादा कुछ है। जब तुम चट्टान को देखते हो, तो चट्टान साफ-सुथरी है। सीधी-साफ है। एकांगी है। जब तुम गुलाब के फूल को देखते हो, तो वह इतना एकांगी नहीं है। कुछ और है। जीवन की झलक है। सौंदर्य है। एक सरगम है।
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