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________________ एस धम्मो सनंतनो यात्रा शुरू कर देगा। पश्चिम में अध्यात्म की बड़ी प्रतिष्ठा होती जा रही है रोज। कारण? कारण वही है—शाश्वत कारण। तीन सौ वर्षों से निरंतर पश्चिम पदार्थवादी है। पदार्थ के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। आत्मा नहीं है; परमात्मा नहीं है। देह सब कुछ है। इन तीन सौ साल की इस धारणा ने एक अति पर पश्चिम को पहंचा दिया; पदार्थवाद की आखिरी ऊंचाई पर पहुंचा दिया। धन है; विज्ञान है; सुख-सुविधाएं हैं। लेकिन अति पर जब आदमी जाता है, तो उसकी आत्मा का गला घुटने लगा। शरीर तो सब तरह से संपन्न है; आत्मा विपन्न होने लगी। और कितनी देर तक तुम आत्मा की विपन्नता को झेल पाओगे? आज नहीं कल आत्मा बगावत करेगी और तुम्हें दूसरी दिशा में मुड़ना ही पड़ेगा। इसलिए अगर पश्चिम पूरब की तरफ आ रहा है, तो तुम यह मत सोचना कि यह पूरब की कोई खूबी है। ऐसा तुम्हारे तथाकथित महात्मा समझते हैं। तुम्हारे राजनेता भी यही बकवास करते रहते हैं। वे सोचते हैं : पश्चिम के लोग पूरब की तरफ आ रहे हैं; देखो, हमारी महिमा! ___तुम्हारी महिमा का इससे कोई संबंध नहीं है। पश्चिम अगर पूरब की तरफ आ रहा है, तो पदार्थवाद की अति के कारण आ रहा है। एक अति देख ली; वहां कुछ पाया नहीं। वहां शरीर तो ठीक रहा, आत्मा घुट गयी। और आदमी दोनों का जोड है। आदमी दोनों का मिलन है। आदमी न तो शरीर है, न आत्मा है। आदमी, दोनों के बीच जो स्वर पैदा होता है, वही है। दोनों के बीच जो लयबद्धता है, वही है। शरीर और आत्मा का नाच है आदमी। साथ-साथ दोनों नाच रहे हैं। उस नृत्य का नाम आदमी है। और जब नृत्य पूरा होता है, शरीर और आत्मा दोनों संयुक्त होते हैं, तब तृप्ति है। ऐसा ही पूरब में घटा। आत्मा-आत्मा-आत्मा। संसार माया है, झूठ है, असत्य है। शरीर है ही नहीं, सपना है। एक अति पैदा कर दी। तो आत्मा की ऊंचाई को तो छुआ, लेकिन शरीर तड़फने लगा, जैसी मछली तड़फती है प्यासी-धूप में, रेत पर-ऐसी भारत की देह घुटने लगी। उस देह की घुटन का यह परिणाम हुआ, जो आज सामने है। ____ तो आदमी का संतुलन जब भी टूटेगा, तब विपरीत दिशा की तरफ यात्रा शुरू हो जाती है। इसलिए फिर दोहराता हूं : यहां योगी भोगी हो जाते हैं; भोगी योगी हो जाते हैं। दोनों चूक जाते हैं। क्योंकि दोनों रोगी हैं। रोग का मतलब–अंति। योगी आत्मा की अति से पीड़ित है। भोगी शरीर की अति से पीड़ित है। दोनों में भेद नहीं है। दोनों अतियों से पीड़ित हैं। एक ने शरीर को घोंट डाला है; एक ने आत्मा को घोंट डाला है। लेकिन दोनों ने जीवन की परिपूर्णता को अंगीकार नहीं किया है। 174
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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