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________________ समग्र संस्कृति का सृजन पहला प्रश्नः .. पूर्व के और खासकर भारत के संदर्भ में एक प्रश्न बहुत समय से मेरा पीछा कर रहा है। वह यह कि जिन लोगों ने कभी दर्शन और चिंतन के, धर्म और ध्यान के गौरीशंकर को लांघा था, वे ही कालांतर में इतने ध्वस्त, और पतित, और विपन्न कैसे हो गए? भगवान, इस प्रश्न पर कुछ प्रकाश डालने की अनुकंपा करें। यह स्वाभाविक ही था। अस्वाभाविक कभी होता भी नहीं। जो होता है, स्वाभाविक है। यह अनिवार्य था। यह होकर ही रहता। क्योंकि जब भी कोई जाति, कोई समाज एक अति पर चला जाता है, तो अति से लौटना पड़ेगा दूसरी अति पर। जीवन संतुलन में है, अतियों में नहीं। जीवन मध्य में है और आदमी का मन डोलता है पेंडुलम की भांति। एक अति से दूसरी अति पर चला जाता है। भोगी योगी हो जाते हैं; योगी भोगी हो जाते हैं। और दोनों जीवन से चूक जाते हैं। जीवन है मध्य में, जहां योग और भोग का मिलन होता है; जहां योग और भोग गले लगते हैं। जो शरीर को ही मानता है, वह आज नहीं कल अध्यात्म की तरफ 173
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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