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बुद्धत्व का आलोक पहचानोगे, जब वह अपने मुकुट को बांधकर और अपने सिंहासन पर बैठेगा। तब पहचानोगे। नहीं तो नहीं पहचान सकोगे । राजा में कुछ और होता ही नहीं । तुम्हारे जैसा ही आदमी है। इस बात को प्रतिष्ठित करने के लिए ही तो इतने हीरे-जवाहरातों की जरूरत पड़ती है।
जब नेपोलियन हार गया, और उसके महलों की छानबीन की गयी, तो बड़े चकित हुए लोग। उसने जो सिंहासन बनवाया था, वह इस ढंग से बनवाया था; उसमें एक यंत्र लगाया हुआ था पीछे कि जब वह सिंहासन पर बैठता, तो सिंहासन अपने आप धीरे-धीरे ऊपर उठ जाता ! चमत्कृत हो जाते थे लोग कि सिंहासन अपने आप ऊपर उठ रहा है !
वह यह दिखाने के लिए उसने लगवाया था कि सिंहासन की वजह से मैं प्रतिष्ठित नहीं; मेरी वजह से सिंहासन प्रतिष्ठित है। देखो, मेरे बैठते ही ... ! पीछे इंतजाम था। जैसे ही वह बैठता, आदमी वहां बटनें दबाते; मशीन काम करती । वह ऊपर उठ जाता। वह दुनिया में अकेला सिंहासन था । लोग सोचते थे : चमत्कार है।
इसलिए तो लोग राजा को सदा भगवान का अवतार मानते रहे कि राजा भगवान का प्रतिनिधि है पृथ्वी पर । ऐसा कुछ भी नहीं है । वह आदमियों तक का प्रतिनिधि नहीं है। भगवान का तो प्रतिनिधि क्या होगा? उसके पास अपना कुछ नहीं है। सब उधार है। उसकी तलवार में उसकी ज्योति है । उसके सैनिकों में उसकी ज्योति है । उसके धन में उसकी ज्योति है ! हीरे-जवाहरातों में ज्योति है । उसकी ज्योति अपनी नहीं है। राजनीति उधार ज्योति है ।
इसलिए बुद्ध कहते हैं : 'अलंकृत होने पर राजा तपता है । '
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जब नेपोलियन को बंद कर दिया गया सेंट हेलेना के द्वीप में, तो वह सुबह घूमने निकला अपने डाक्टर के साथ पहले ही दिन । अब तो कैदी है, सम्राट नहीं रहा। हार गया सब। एक घास वाली औरत, जिस पगडंडी पर वह घूमने गया, घास का गट्ठर लिए आ रही है । नेपोलियन का साथी जो डाक्टर है, जो उसके पास रखा गया है उसकी सेवा इत्यादि के लिए, वह चिल्लाकर कहता है : घसियारिन, रास्ता छोड़! उसकी बात सुनता है नेपोलियन और उसे याद आता है कि अब तो मैं एक कैदी हूं। वह हाथ पकड़ लेता है डाक्टर का । पगडंडी से नीचे उतर जाता है। डाक्टर कहता है, क्यों? वह कहता है: वह जमाना गया, जब मैं कहता पहाड़ों से कि हट जाओ मैं आता हूं, तो पहाड़ हट जाते। अब घसियारिन भी नहीं हटेगी। हम ही को हट जाना चाहिए। वे दिन गए!
नेपोलियन जैसा शक्तिशाली आदमी भी एकदम नपुंसक हो जाता है। पद गया कि सब गया। धन गया कि सब गया।
तो बुद्ध कहते हैं : राजा भी तपता है, लेकिन अलंकृत होने से।
'ध्यानी होने पर ब्राह्मण तपता है ।'
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