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________________ एस धम्मो सनंतनो प्रकाशित होता है। 'ध्यानी होने पर ब्राह्मण तपता है । ' और जब ध्यान की पहली झलकें आनी शुरू होती हैं, तो एक ज्योति आनी शुरू होती है ब्राह्मण से, ध्यानी से । 'और बुद्ध दिन-रात तपते हैं।' अकारण तपते हैं। बिन बाती बिन तेल । फर्क समझना। सूरज की सीमा है, दिन में तपता है। चांद की सीमा है, रात तपता है । फिर सूरज एक दिन बुझ जाएगा। और चांद के पास तो अपनी कोई रोशनी नहीं है, उधार है । वह सूरज की रोशनी लेकर तपता है। जिस दिन सूरज बुझ जाएगा, उसी दिन चांद भी बुझ जाएगा। चांद तो दर्पण जैसा है। वह तो सिर्फ सूरज की रोशनी को प्रतिफलित करता है। सूरज गया, तो चांद गया। सूरज की सीमा है; हालांकि सीमा बहुत बड़ी है। करोड़ों-करोड़ों वर्ष से तप रहा है। लेकिन वैज्ञानिक कहते हैं: एक दिन बुझेगा। क्योंकि यह बिन बाती बिन तेल नहीं है। इसका ईंधन समाप्त हो रहा है, रोज-रोज समाप्त हो रहा है। बड़ा ईंधन है इसके पास, लेकिन रोज सूरज ठंडा होता जा रहा है। उसकी गर्मी कम होती जा रही है। गर्मी फिंकी जा रही है; खर्च होती जा रही है। एक दिन सूरज चुक जाएगा। यह प्रकाश सीमित है । तुम्हारे घर में जला हुआ दीया तो सीमित है ही। क्या है उसकी सीमा ? उसका तेल । रातभर जलेगा; तेल चुक जाएगा; बाती भी जल जाएगी फिर । फिर दीया पड़ा रह जाएगा। ऐसे ही सूरज भी जलेगा -करोड़ों-करोड़ों वर्षों तक। लेकिन उसकी सीमा है। और चांद में तो प्रतिफलन है केवल । 'अलंकृत होने पर राजा तपता है । ' राजा की जो प्रतिष्ठा होती है, प्रकाश होता है, वह अपना नहीं होता; उधार होता है। 168 S देखते तुम, एक आदमी जब गद्दी पर बैठता है, तो दिखायी पड़ता है सारी दुनिया को; नहीं तो उसका पता ही नहीं चलता किसी को । कोई आदमी मिनिस्टर हो गया, तब तुम्हें पता चलता है कि अरे ! आप भी दुनिया में थे ! फिर वह एकदम दिखायी पड़ने लगता है। सब अखबारों में दिखायी पड़ने लगता है। प्रथम पृष्ठ पर दिखायी पड़ने लगता है। सब तरफ शोरगुल होने लगता है। फिर एक दिन पद चला गया। फिर वह कहां खो जाता है, पता ही नहीं चलता ! फिर तुम उसे खोजने निकलो, तो पता न चले! यह उधार है, यह प्रतिष्ठा उधार है। यह ज्योति अपनी नहीं है। यह अपनी नहीं है; यह पद की है। अगर तुम्हें राजा मिल जाए साधारण वस्त्रों में, तुम पहचान न सकोगे। तभी
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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