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एस धम्मो सनंतनो
राजा से बेहतर ब्राह्मण है। उसके भीतर की संपदा प्रगट होनी शुरू हुई। ध्यान उमगा। लेकिन ध्यान ऐसा है: कभी होगा; कभी चूक जाएगा। ब्राह्मण, ध्यानीकभी-कभी बिजली जैसे कौंधे-ऐसी दशा है। बिजली कौंध जाती है; सब तरफ रोशनी हो जाती है। फिर बिजली चली गयी, तो सब तरफ अंधेरा हो जाता है।
ध्यान का अर्थ है : समाधि की कौंध। और जब ध्यान इतना गहरा हो जाता है कि अब समाधि की तरह निश्चित हो गया, ठहर गया; अब जाता नहीं, आता नहीं। जब रोशनी थिर हो गयी, तो बुद्धत्व।
बुद्धत्व ब्राह्मण की पराकाष्ठा है। ध्यान है झलक, समाधि है उपलब्धि। 'ध्यानी होने पर ब्राह्मण तपता है। बुद्ध रात-दिन अपने तेज से तपते हैं।' और बुद्ध...
अथ सब्बमहोरत्तिं बुद्धो तपति तेजसा।
...उन पर कोई सीमा नहीं है। न तो ऐसी सीमा है, जैसी चांद-सरों पर। न ऐसी सीमा है, जैसे अलंकृत राजा पर। न ऐसी सीमा है, जैसे ध्यानी ब्राह्मण पर। उनकी सब सीमाएं समाप्त हो गयीं। वे प्रकाशमय हो गए हैं। वे प्रकाश ही हो गए हैं। वे तो मिट गए हैं, प्रकाश ही रह गया है। __ यही दिशा होनी चाहिए। यही खोज होनी चाहिए। ऐसी ज्योति तुम्हारे भीतर प्रगट हो, जो दिन-रात जले; जीवन में जले, मृत्यु में जले; देह में जले; जब देह से मुक्त हो जाओ, तो भी जले। और ऐसी ज्योति, जो ईंधन पर निर्भर न हो, किसी तरह के ईंधन पर निर्भर न हो। जो निर्भर ही न हो। ऐसी ज्योति, जिसको संतों ने कहा- बिन बाती बिन तेल।
आज इतना ही।
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