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________________ एस धम्मो सनंतनो फिर एक और तरह का आसन है। वही असली आसन है। तुम्हारा मन थिर हो गया। चूंकि मन थिर हो गया, इसलिए शरीर नहीं कंपता। तुम्हारा मन शांत है, इसलिए शरीर को कंपाने की कोई जरूरत नहीं है। तब तुम शांत बैठे-यह और ही बात हो गयी। इसलिए पहली को बुद्ध ने लौकिक कहा, दूसरी को अलौकिक। पहली से तुम ब्राह्मण तक नहीं पहुंच पाओगे। पहली से क्षत्रिय तक। संकल्प; जूझते हुए; लड़ते हुए; प्रयास से। दूसरी से तुम ब्राह्मण होओगे। प्रसाद से। इसलिए बुद्ध ने कहाः जो दो धर्मों को जान लेता, समथ और विपस्सना, वह पहुंच गया। पहले आदमी को समथ से जाना पड़ता है। फिर समथ की हार पर विपस्सना का जन्म होता है। ऐसा ही बुद्ध को हुआ। छह वर्ष तक उन्होंने जो साधा, वह समथ समाधि थी। फिर छह वर्ष के बाद, उस आखिरी रात जो घटा, वह विपस्सना समाधि थी। ___'जिसके पार, अपार और पारापार नहीं है, जो वीतभय और असंग है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।' किसे ब्राह्मण कहता हूं? उसे जो तीन चीजों से दूर निकल गया है। पार का अर्थ होता है स्थूल; आंख, कान, नाक से जो देखा जाता है; जिसकी सीमा है-पार। अपार का अर्थ होता है जिसकी सीमा नहीं है; जो बड़ा है; सूक्ष्म है, स्थूल नहीं है। रूप, रस, गंध से, जो इंद्रियों से नहीं जाना जाता है, मगर मन से जाना जाता है। ___ जैसे तुमने एक फूल देखा। इंद्रियां सिर्फ इतना ही कह सकती हैं कि लाल है। बड़ा है। सुगंधित है। ये इंद्रियां कह रही हैं। यह पार है। जब तुम कहते होः सुंदर है, तो कोई इंद्रिय तुम्हारे पास नहीं है सुंदर कहने वाली। सुंदर कहने वाला मन है। कोई इंद्रिय नहीं बता सकती तमको कि फल संदर है। कैसे बताएगी? इंद्रिय तो सिर्फ खबर दे देती है। इंद्रिय तो ऐसे है, जैसे कैमरा। कैमरा यह नहीं कह सकता कि सुंदर है, कि असुंदर। कैमरा तो उतार देता है, जो है। सामने गुलाब का फूल है; इंद्रिय खबर दे देती है। आंखें कहती हैं कि लाल फूल है; गुलाब का है। नाक कहती है : सुगंधित है। मगर सुंदर! जब तुम सुंदर कहते हो तो अपार। ___ तो रस, रूप, गंध, सौंदर्य-ये जो हैं, ये सूक्ष्म अनुभव हैं मन के। इंद्रियों के अनुभव-पार। मन के अनुभव-जो कि आत्मा और इंद्रिय के मध्य में है-अपार। और फिर पारापार। पार और अपार दोनों से भी पार, दोनों के आगे-फिर आत्मा का अनुभव है। और जो इन तीनों से पार हो जाता है...। वह आत्मा का अनुभव क्या है ? मैं का अनुभव–अत्ता। इसलिए बुद्ध ने कहा : आत्मा नहीं-अनत्ता। मैं को भी जाने दो। इंद्रियां गयीं; मन गया; मैं को भी जाने दो। पार से पार; अपार से पार; 164
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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