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________________ एस धम्मो सनंतनो तो ध्यान में लग; समाधि में उतर। फिर भी वक्कलि को सुध न आयी। सुध इतनी आसानी से आती ही कहां है! सुध ही आ जाए, तो फिर और क्या बचा? वक्कलि ने सुन लिया होगा। शायद सुना भी न हो! जब बुद्ध यह कह रहे थे, तब वह उनकी भाव-भंगिमा देखता हो; हाथ को देखता हो; मुद्रा देखता हो; चेहरा देखता हो। शायद सुना ही न हो। जब तुम किसी एक चीज में अटके होते हो, तो तुम्हें कुछ और दिखायी ही नहीं पड़ता। या उसने कहा ः ऐसा तो बुद्ध रोज ही कहते रहते हैं! यह तो कई दफे सुन लिया। यह तो इनके प्रवचन में रोज ही आता है। इसमें कौन सी खास बात है! वह अपने में ही लीन रहा होगा। अपनी ही भावदशा में तल्लीन रहा होगा। उसे सुध न आयी। वह शास्ता का साथ छोड़कर कहीं जाता भी न था। शास्ता के कहने पर भी नहीं। ऐसी घटनाएं यहां घट जाती हैं। मेरी एक संन्यासिनी है-कुसुम। वह जब पहली दफा आयी, मेरे चरणों में सिर रखकर कहा कि सब समर्पित करती हूं। बस, अब मेरे जीवन के सूत्रधार आप हैं। जो आप कहेंगे, वही करूंगी। और मुझे यहीं रहना है। मुझे कहीं जाना नहीं है। मैंने उससे कहा : देख, मैं तुझ से कहता हूं कि तू अभी जा वापस घर। तेरे माता-पिता दुखी होंगे, परेशान होंगे। कुछ दिन तु ध्यान कर। उसने कहाः मैं जाने वाली नहीं। मैंने उससे कहा ः देख, तू कहती है कि आप जो कहेंगे! मैं कह रहा हूं कि जा! उसने कहा : आप जो कहेंगे, वह करूंगी। लेकिन मैं जाने वाली नहीं! नहीं गयी। परी हठयोगिनी है। यह वक्कलि ऐसा ही आदमी रहा होगा, जैसी कुसुम। बुद्ध उसको कभी-कभी भेजना चाहते कहीं-कि जा! दूसरे गांव जाकर कुछ काम करके आ। वह कहताः आप जो कहेंगे, करूंगा। मगर कहीं जा नहीं सकता। रहूंगा तो यहीं। एक दिन को भी आपको बिना देखे नहीं रह सकता। उसके मोह को तोड़ने को कहते होंगे कि जा। मगर जिद्दी था। ____ मन बड़ा जिद्दी है। सुनता ही नहीं। उनकी भी नहीं सुनता, जिनकी सुनकर क्रांति घट सकती है। शास्ता के कहने पर भी नहीं जाता था। उसका मोह छूटता ही नहीं था। एक दिन बिना देखे कैसे रह जाऊंगा! और देखता क्या था? देखता था नाक-नक्श। देखने योग्य जो था, वह तो देखता नहीं था। ___ तब शास्ता ने सोचाः यह ऐसे मानने वाला नहीं है। इस पर तो बड़ी चोट करनी पड़ेगी। __ और ध्यान रखना ः अगर कभी बुद्ध जैसे व्यक्ति चोट करते हैं, तो सिर्फ अनुकंपा के कारण, करुणा के कारण। इस पर दया आती होगी कि बेचारा, मेरे पास आकर भी चूका जाता है! इतने पास रहकर चूका जाता है। सरोवर के इतने 158
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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