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बुद्धत्व का आलोक
उसका खाना बनाना उचित नहीं है। तब उसके हाथ से जहर जाएगा। और तब अच्छा है कि वह एकांत में, एक कमरे में बैठ जाए। चार दिन बिलकुल विश्राम कर ले। ये चार दिन ऐसी हो जाए, जैसे मर ही गयी। दुनिया से उसका कोई नाता न रहे। __यह बड़ी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया थी। लेकिन चूंकि हमने इसको भी गलत ढंग दे दिया था...। हालांकि हम गलत ढंग इसलिए दे देते हैं कि शब्दों को समझ नहीं पाते।
जब स्त्री मासिक-धर्म में होती है, तो पुराने शास्त्र कहते हैं : वह शूद्र हो गयी। मगर शूद्र होने का मतलब ही यह होता है कि नकार हो गया। उसको छूना मत; शूद्र हो गयी। मगर पुरुष भी इसी तरह शूद्र होते हैं। शास्त्र चूंकि पुरुषों ने लिखे हैं, इसलिए पुरुषों के चार दिन नहीं लिखे गए।
लेकिन अब विज्ञान की खोजों ने यह साफ कर दिया है कि पुरुष भी चार दिन इसी तरह शूद्र हो जाते हैं। और तुम अपने वे चार दिन भी खोज ले सकते हो। और तुम चकित होओगेः हर महीने ठीक वर्तुल में वे चार दिन आते हैं। उनकी तारीखें तय हैं। उन चार दिनों में तुमसे हमेशा बुराई होती है। झगड़ा हो जाता है। मार-पीट हो जाती है। उन चार दिनों में तुमसे चूकें होती हैं। कार चलाओगे, एक्सीडेंट हो जाएगा। उन चार दिनों में हाथ से चीजें छूट जाएंगी, गिर जाएंगी, टूट जाएंगी। उन चार दिनों में तुमसे ऐसे वचन निकल जाएंगे, जो तुम नहीं कहना चाहते थे; और फिर पीछे पछताओगे। उन चार दिनों में तुम अपने में नहीं हो। उन चार दिनों में तुम्हारा शूद्र पूरी तरह तुम्हारे ऊपर हावी हो गया है। __ और जैसे चार दिन शूद्र के होते हैं, ऐसे ही चार दिन ब्राह्मण के भी होते हैं, क्योंकि आदमी अतियों में डोलता है। एक अति से दूसरी अति-जैसे घड़ी का पेंडुलम डोलता है।
तो बुद्ध ने प्रतीक्षा की कि जरा परिपक्व हो जाए। इसकी कोई प्रौढ़ घड़ी, कोई सम्यक घड़ी देखकर कहूंगा।
फिर एक दिन थोड़ी प्रौढ़ता की भावना को देखकर भगवान ने कहाः वक्कलि! इस अपवित्र शरीर को देखने से क्या लाभ? वक्कलि, जो धर्म को देखता है, वह मुझे देखता है।
तो तू ध्यान कर और धर्म को देख। धर्म को देख सकेगा-धर्म यानी तेरा स्वभाव-जब तू अपने स्वभाव को देख सकेगा, तो तूने मुझे देखा। तभी जानना कि तूने मुझे देखा। मैं अगर कुछ हूं, तो धर्म हूं। मैं अगर कुछ हूं, तो ध्यान हूं। मैं अगर कुछ हूं, तो समाधि हूं। तू समाधिस्थ हो, तो मुझसे जुड़ेगा। इन चमड़े की आंखों से मेरे चमड़े को देखते-देखते समय मत गंवा। ये आंखें भी कल मिट्टी में गिर जाएंगी, यह देह भी कल मिट्टी में गिर जाएगी। इसके पहले कि यह देह मिट्टी में गिर जाए, इस देह के भीतर जो ज्योति प्रज्वलित हुई है, उसे देख। मगर उसे तू तभी देख सकेगा, जब तू धर्म को देखने में कुशल हो जाए। नहीं तो नहीं देख सकेगा।
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