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________________ एस धम्मो सनंतनो सकता है कि अगर तुम ठीक से प्रार्थना कर लो, तो यह दिनभर पर फैल जाए। इसका रंग दिनभर मौजूद रह जाए। फिर धर्मों ने कहाः रात के अंतिम समय में, जब तुम थक गए दिनभर के उपद्रव से, ऊब गए, तब फिर प्रार्थना कर लेना। उसका क्या अर्थ होगा? यह बात तो विरोधाभासी लगती है। सुबह तो ठीक कि सब ताजा था। रात क्यों, जब कि सब बासा हो गया? उसके पीछे भी कारण है। जब दिनभर का तुम संसार देख चुके, तो एक विराग की भावदशा अपने आप पैदा होती है। लगता है : सब फिजूल है। दिनभर देखने के बाद नहीं लगे जिसको, वह आदमी बिलकुल वज्र बहरा है। सब फिजूल है! कोई सार नहीं! ऐसी जो भावदशा है, इसका भी उपयोग कर लेना। इसके ऊपर भी सवार हो जाना। इसका घोड़ा बना लेना। और प्रभु की प्रार्थना करते-करते ही नींद में उतर जाना। उसका भी लाभ है। क्योंकि प्रभु की प्रार्थना करते-करते अगर नींद में उतर गए, तो नींद पर फैल जाएगी प्रभु की छाया। ऐसे जीवन के इन दो क्षणों को सभी धर्मों ने स्वीकार किया है। इन दो क्षणों को प्रभु पर समर्पित करना। फिर ऐसा नहीं कि इन दो ही क्षणों में यह बात घटती है। दिन में कई दफे तुम्हारा मौसम बदलता है। तुम जरा निरीक्षण करोगे, तो तुम समझने लगोगे कि कब मौसम बदलता है। और अगर तुम निरीक्षण ठीक से करो, तो अदभुत परिणाम ला सकते हो। तुम एक अपने जीवन की व्यवस्था भी खोज सकते हो। ' एक बार तीन महीने तक डायरी रखो। हर रोज, सोमवार से लेकर रविवार तक, अपनी डायरी में लिखते रहो-कब तुम्हारे भीतर ब्राह्मण-क्षण होता है; कब शूद्र-क्षण होता है; कब क्षत्रिय-क्षण होता है; कब वैश्य का क्षण होता है। तीन महीने तक नोट करते रहो। धोखा मत देना; क्योंकि धोखा किसको दोगे? तुम अपने को ही दोगे। जबर्दस्ती मत लिख लेना कि नहीं है ब्राह्मण-क्षण, लेकिन दिखाना तो चाहिए कि एक ब्राह्मण-क्षण...! न हो, तो नहीं लिखना। जब हो, तो ही लिखना। अगर तुम एक तीन महीने तक अपने भीतर का सारा ब्यौरा लिख लो, तुम चकित हो जाओगे। तुम चकित इसलिए हो जाओगे कि तुम तीन महीने के बाद पाओगे कि करीब-करीब तुम्हारे भीतर जो बदलाहटें होती हैं, वे सुनिश्चित हैं। अगर सोमवार को सुबह तुम्हें आनंदित मालूम हुआ है, तो तुम चकित होओगे जानकर कि हर सोमवार को ऐसा होता है! तुम्हारे भीतर एक वर्तुल है, जैसे गाड़ी का चाक घूमता है। अगर हर शनिवार को तुम्हारे भीतर क्रोध का जन्म होता है, क्रोध की छाया होती है; तुम कुछ न कुछ झंझट खड़ी कर लेते हो; कोई झगड़े में पड़ जाते हो; किसी को मार देते हो। तो तुम चकित होओगे तीन महीने के बाद कि यह करीब-करीब हर शनिवार को होता है 154
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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