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________________ बुद्धत्व का आलोक तुम्हारा चित्त तो छुई-मुई है; जरा-जरा में बदलता है! जब न बदले, तो तुम बुद्ध हो गए। जब न बदले, तो स्थितप्रज्ञ हुए। जब न बदले, तो स्थिरधी हुए। जब न बदले, तो भगवत्ता प्रगट हई। लेकिन यह मन तो बदलता रहता है। यह मन तो गिरगिट है; यह तो रंग बदलता रहता है। इसलिए तुम यह मत सोचना कि कोई शूद्र है, तो चौबीस घंटे शूद्र है। इसी कारण सारे दुनिया के धर्मों ने कुछ समय खोज निकाले हैं, जब प्रार्थना करनी चाहिए। जैसे ठीक सुबह ब्रह्म-मुहूर्त में। उसको ब्रह्म-मुहूर्त क्यों कहते हैं? क्योंकि उस वक्त आदमी के ब्राह्मण-भाव के उदय होने की संभावना ज्यादा है। क्यों? रातभर सोए। विश्राम किया। कम से कम आठ घंटे के लिए दुनिया भूल गयी। तो दुनिया का जाल आठ घंटे के लिए टूट गया। सुबह जब आंख खुलती है, नींद की गहरी ताजगी के बाद, विश्राम के बाद, तुम्हारे भीतर थोड़ी देर के लिए ब्राह्मण का जन्म होता है। उस क्षण तुम्हारे भीतर दया होती, करुणा होती, प्रेम होता, उल्लास होता, उत्साह होता। जीवन फिर जागा। फिर तुम ताजे हो गए हो। फिर हवाएं बहीं। फिर सूरज निकला। फिर पक्षियों ने गीत गाए। फिर फूल खिले। तुम्हारे भीतर भी फूल खिला। तुम्हारे भीतर भी हवाएं बहीं। तुम्हारे भीतर भी सूरज निकला। तुम्हारे भीतर का पक्षी भी गीत गाने लगा। ___ सुबह होती है, तो सारा जगत आह्लाद से भरता है। रातभर के विश्राम के बाद यह आह्लाद स्वाभाविक है। तुम कैसे वंचित रहोगे। ___ इसलिए धर्मों ने निरंतर कहा है कि जल्दी जाग जाओ। वह जो आदमी आठ-नौ-दस बजे उठेगा, वह चूक गया अपने ब्रह्म होने के क्षण को, ब्राह्मण होने के क्षण को। वह उठते से ही शूद्र होगा। ___तुमने देखा, जो आदमी दस बजे तक पड़ा रहेगा, जब वह उठे तो उसके चेहरे पर तुम्हें शूद्र दिखायी पड़ेगा! जो सुबह ब्रह्म-मुहूर्त में उठ आया है सूरज के साथ-साथ, जो प्रकृति के साथ-साथ उठ आया है, उसके भीतर तुम एक तरंग पाओगे, एक ताजगी पाओगे। उसकी आंखों में एक शांति पाओगे। चाहे वह शांति ज्यादा देर न टिके, क्योंकि जिंदगी कठिन है। जल्दी ही उपद्रव शुरू हो जाएगा। दुकान खोलेगा, ग्राहक आएंगे। दफ्तर जाएगा; पत्नी उठेगी; बच्चे होंगे। सब उपद्रव शुरू अभी हो जाने को है। लेकिन इसके पहले कि उपद्रव शुरू हो, सभी धर्मों ने कहा है, प्रार्थना कर लेना। प्रार्थना का अर्थ है : यह जो क्षण मिला है, यह जो झरोखा खुला है थोड़ी देर के लिए, इस पर सवार हो जाना, इसका फायदा उठा लेना। इस क्षण को परमात्मा के चरणों में समर्पित कर देना। इस क्षण को अगर तुमने परमात्मा की पुकार में, परमात्मा की प्रार्थना में लगा दिया, तो बहुत संभावना है कि यह क्षण थोड़ा लंबा जाएगा। अगर वैसे कुछ देर रहता, अब शायद थोड़ी ज्यादा देर टिकेगा। यह भी हो 153
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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