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एस धम्मो सनंतनो
तो सब संसार भी छोड़ दिया। यह दीवाना है उनके रूप पर।
तथागत को यह बात दिखायी पड़ रही है-पहले दिन से ही दिखायी पड़ रही है; जब यह भिक्षु बना होगा, तब से दिखायी पड़ रही है कि इसके भीतर बड़ी कामुकता भरी पड़ी है। यह शूद्र है। __ लेकिन बुद्ध जैसे व्यक्ति में महाकरुणा होती है। __ उन्होंने सोचाः अभी कहना ठीक नहीं है। थोड़ी देर देखने दो। या तो इसे खुद ही समझ आ जाएगी। शायद देखते-देखते, देखते-देखते भीतर का भी कुछ दिखायी पड़ जाए। शायद देखते-देखते मैं जो कहता हूं, वह सुनायी पड़ जाए! शायद देखते-देखते यहां इतने लोग धारणा-ध्यान कर रहे हैं, इतने लोग भावना कर रहे हैं, इनकी तरंगों का थोड़ा परिणाम हो जाए! सत्संग का असर होता है। जैसे लोगों के साथ होते हो, वैसे हो जाते हो। शायद कुछ हो जाए। थोड़ी प्रौढ़ता आने दो। __तो देखते थे कि यह सिर्फ मेरी तरफ देखता है और इसकी आंखों में मेरी तलाश नहीं है। सिर्फ चमड़े पर अटक जाती हैं आंखें। यह चमार है। फिर भी चुप रहे। उसकी अपरिपक्वता को देखते हुए कुछ भी नहीं कहे।
फिर एक दिन ठीक घड़ी जान...।
कहना भी तभी होता है, जब ठीक घड़ी आ जाए। बुद्धपुरुष तभी कहते हैं, जब ठीक घड़ी आ जाए। क्योंकि चोट तभी करनी चाहिए, जब लोहा गरम हो। और बात तभी कहनी चाहिए, जब प्रवेश कर सके। किसी के द्वार तभी ठकठकाने चाहिए, जब खुलने की थोड़ी संभावना हो। पुकार तभी देनी चाहिए, जब किसी की नींद टूटने के करीब ही हो। कोई भयंकर नींद में खोया हो, तो पुकार भी न सुनेगा। ___ तो बुद्ध प्रतीक्षा करते थे ठीक क्षण की। कभी जब जरा इसकी शूद्रता कम होगी, कभी जब इसके भीतर ब्राह्मण-भाव का थोड़ा सा प्रवाह होगा। __ और ध्यान रखना : चौबीस घंटे कोई भी शूद्र नहीं होता; और चौबीस घंटे कोई भी ब्राह्मण नहीं होता। बड़े से बड़ा ब्राह्मण कभी-कभी बिलकुल छोटे से छोटा शूद्र हो जाता है। और कभी-कभी क्षुद्र से क्षुद्र शूद्र भी ब्राह्मण होने की तरंगों से आंदोलित होता है। जीवन प्रवाह है।
तुमने अपने भीतर भी यह प्रवाह देखा होगा : कभी तुम ब्राह्मण होते हो; कभी तुम शूद्र; कभी क्षत्रिय, कभी वैश्य। क्योंकि ये स्थितियां बदलती रहती हैं। ये तो मौसम हैं। अभी बादल घिरे हैं, तो एक बात। अभी सूरज निकल आया, तो दूसरी बात। अभी किसी ने आकर तुम्हारी निंदा कर दी, तो तुम्हारे चित्त की दशा कुछ हो गयी। और किसी ने आकर तुम्हारी प्रशंसा कर दी, तो तुम्हारे चित्त की दशा कुछ हो गयी। राह पर चलते थे; रुपए की थैली मिल गयी, तो तुम्हारा चित्त बदल गया। पैर में कांटा गड़ गया, तो तुम्हारा चित्त बदल गया। किसी ने एक गाली दे दी; कोई अपमान कर गया; कि कोई हंसने लगा देखकर–कि तुम्हारा चित्त बदल गया।
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