________________
बुद्धत्व का आलोक
इसको उन्होंने भक्ति नहीं कहा, इसलिए भावना कहा। इसको उन्होंने ठीक शब्द दिया: ब्रह्म-भावना। परमात्मा बाहर नहीं है; परमात्मा तुम्हारे भीतर है। तुम भावना कर लो; तुम्हारे भीतर प्रगट हो जाए। भावना की छेनी से तुम अपने भीतर की मूर्ति को निखार लो। किसी और मंदिर में फूल नहीं चढ़ाने हैं।
लेकिन न तो वक्कलि ने ध्यान किया, न भावना की। वह आया ही नहीं था ध्यान करने या भावना करने। उसकी नजर तो कुछ और ही थी। उसकी दृष्टि तो कुछ
और ही थी। __यहां सूफी नृत्य होता है। अनीता बड़ी परेशान रहती है; जो सूफी नृत्य को नेतृत्व देती है। उसकी परेशानी यह है कि अधिकतम भारतीय, जो सूफी नृत्य में आते हैं, उनकी नजर स्त्रियों पर होती है। वह बड़ी परेशान है। सभी नहीं, लेकिन अधिकतम। वे आते ही इसलिए हैं। उन्हें सूफी नृत्य से कुछ लेना-देना नहीं है। लेकिन सूफी नृत्य में स्त्रियां नाच रही हैं और उनका हाथ छूने का मौका मिलेगा-उनकी नजर उस पर होती है ! उस पर नजर होने के कारण सूफी नृत्य की जो महिमा है, वह खो ही जाती है। और ऐसे एक-दो आदमी भी वहां हों, तो वे विघ्न-बाधा खड़ी कर देते हैं।
उसकी परेशानी बढ़ती गयी। मैं कोशिश करता रहा कल तक कि किसी तरह सम्हालो। लेकिन वह बढ़ती ही जाती है बात। तो अब मजबूरी में यह तय करना पड़ा कि सूफी नृत्य में भारतीय सम्मिलित नहीं हो सकेंगे। इसमें मैं जानता हूं, कुछ लोग अकारण वंचित रह जाएंगे। लेकिन कोई और उपाय दिखता नहीं।
कोई गलत कारण से भी ध्यान करने आ सकता है।
भारतीयों के मन में कामवासना बड़ी दबी पड़ी है, भयंकर रूप से दबी पड़ी है। सदियों का बोझ है उनके ऊपर। एक चीज को इतना दबा लिया है कि वह उनके रग-रग में समा गयी है। उनके खून में प्रविष्ट हो गयी है। वे और कुछ सोच ही नहीं सकते। हालांकि वे सोचते हैं कि धार्मिक लोग हैं! उनकी धार्मिकता में यह सारा अधर्म समाया हुआ है। वे सोचते हैं कि हम धार्मिक हैं। लेकिन जैसे ही वे स्त्री को देखते हैं, उनके भीतर बड़े विकार उठने लगते हैं। उन विकारों को वे दबाए जाते हैं। क्योंकि दबाना उन्हें सिखाया गया है।
लेकिन दबाए गए विकारों से कभी मुक्ति नहीं होती। मुक्ति समझ से होती है; दबाने से नहीं होती। दमन से तो घाव छिप जाते हैं। उनमें मवाद पड़ने लगती है। ऐसे भारतीय मनुष्य के मन में बड़ी मवाद पड़ गयी है। और वह मवाद बढ़ती चली जाती है, क्योंकि तुम्हारे साधु-महात्मा उसी मवाद को बढ़ाने का काम करते हैं।
मुक्ति चाहिए कामवासना से—निश्चित मुक्ति चाहिए। लेकिन दमन से मुक्ति नहीं होती।
अब यह वक्कलि कैसे ध्यान करे! कैसे भावना करे! यह तो बुद्ध के रूप पर मोहित होकर आ गया है। इसने तो भिक्षु का वेश भी स्वीकार कर लिया है। इसने
151