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________________ बुद्धत्व का आलोक उपलब्ध हुई। तभी तृप्ति है। उसके पूर्व कोई तृप्ति नहीं है। वक्कलि स्थविर श्रावस्ती में ब्राह्मण-कुल में उत्पन्न हुए थे। वे तरुणाई के समय भिक्षाटन करते हुए तथागत के सुंदर रूप को देखकर अति मोहित हो गए। फिर ऐसा सोचकर कि यदि मैं इनके पास भिक्षु हो जाऊंगा, तो सदा इन्हें देख पाऊंगा, प्रव्रजित भी हो गए। ___आदमी कभी-कभी ठीक काम भी गलत कारणों से करता है। और कभी-कभी गलत काम भी ठीक कारणों से करता है! और स्मरण रखना इस सूत्र को कि गलत आकांक्षा से किया गया ठीक काम भी गलत हो जाता है। और ठीक आकांक्षा से किया गया गलत काम भी ठीक हो जाता है। अंततः निर्णायक तुम्हारी आकांक्षा है। ___ परसों की कहानी तुमने देखी! नंगलकुल बड़ी गलत आकांक्षा से वृक्ष पर टांग आए अपने नंगल को, अपने हल को देखने जाता था। नंगल को देखने जाता था। नंगल में क्या हो सकता है! हल में क्या हो सकता है? कुछ भी नहीं। लेकिन हल को देखते-देखते ज्ञान को उपलब्ध हो गया! यहां बात बिलकुल उलटी हो रही है। यहां कोई आदमी बुद्ध के पास आ गया है और फिर भी चूकेगा। चूकेगा, क्योंकि बुद्ध से भी उसने जो संबंध जोड़े हैं, वे बड़ी शूद्र की चित्तदशा से उमगे हैं। इस आदमी ने न तो बुद्ध के वचन सुने हैं; इस आदमी ने न बुद्ध के भीतर की महिमा देखी। इस आदमी ने, जो बुद्ध का सबसे ज्यादा बाहरी हिस्सा था, वही देखा। बुद्ध की देह देखी। यह शूद्र है। अगर यह बुद्ध का मन देख ले, तो वैश्य है। अगर यह बुद्ध की आत्मा देख ले, तो क्षत्रिय है। अगर यह बुद्ध के भीतर का परमात्मा देख ले, तो ब्राह्मण है। ये दृष्टियों के नाम हैं; शूद्र, ब्राह्मण। ___ शूद्र करीब-करीब देखता ही नहीं, टटोलता है। जैसे अंधा आदमी। तुमने हेलेन केलर के संबंध में सुना है? वह अंधी है, बहरी है। अब उसके पास एक ही उपाय है किसी को जानने का कि उसके चेहरे पर हाथ फेरे। जब उसने पंडित जवाहरलाल नेहरू को देखा पहली दफा, तो उसने उनके चेहरे पर हाथ फेरा और बहुत खुश हुई। उसने कहा : मैं खुश हूं। तुम्हारा चेहरा बड़ा सुंदर है! जवाहरलाल को तो भरोसा नहीं हुआ कि यह अंधी स्त्री चेहरे पर हाथ फेरकर चेहरे के सौंदर्य को कैसे समझ लेगी! उन्होंने कहा कि मुझे भरोसा नहीं आता। उसने कहा कि तम्हारा चेहरा ठीक वैसा है, जैसा मैंने यूनान में मूर्तियों का देखा: संगमर्मर की मूर्तियां...। जब मैंने उन पर हाथ फेरा, तो मुझे जैसा भाव हुआ, वैसा तुम्हारे चेहरे को देखकर हुआ। जवाहरलाल के पास प्यारा चेहरा था। संगमर्मर की मूर्तियों जैसा चेहरा था। लेकिन अंधा आदमी देख तो नहीं सकता; टटोल सकता है। 149
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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