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एस धम्मो सनंतनो
रहे हैं। इसके पहले कि दूसरे जल-स्रोत तक पहुंच जाएं, इस वृक्ष को अपनी जड़ें वहां पहुंचा देनी हैं; नहीं तो दूसरे कब्जा कर लेंगे। फिर आकाश की तरफ उठना है। फिर अकेले ही नहीं हैं, और वृक्ष पहले से आकाश की तरफ उठे खड़े हैं। अगर
आकाश की तरफ न उठेगा, तो सूरज की रोशनी न मिलेगी, शुद्ध हवाएं न मिलेंगी। संघर्ष है। संकल्प है।
संकल्प और संघर्ष से कोई ऊपर जाता है। लेकिन संकल्प की सीमा है। अपने हाथ से लड़ना कितनी दूर तक हो सकता है? हमारे हाथ ही बहुत छोटे हैं।
क्षत्रिय अपने पर भरोसा करता है, इसलिए जाता है, वैश्य से आगे जाता है। लेकिन अपने भरोसे की सीमा है। तुम्हारी सामर्थ्य कितनी? एक दिन संकल्प थक जाएगा। क्षत्रिय गिरेगा; जैसे तूफान आया और बड़ा वृक्ष गिर गया। लड़ता रहा था अब तक, लेकिन तूफानों से कैसे लड़ेगा? छोटी-मोटी हवाएं आती थीं, निपट लेता था। आज भयंकर चक्रवात आया। आज तांडव नृत्य करती हुई हवाएं आयीं। आज नहीं होगा। संघर्ष की सीमा है। अपने से जब तक बना, लड़ लिया; अब गिरेगा और टूटेगा। और जब बड़े वृक्ष गिरते हैं, तो दुबारा नहीं उठते। उठ ही नहीं सकते। उठने का कोई उपाय नहीं है। इसके पार ब्राह्मण है। __ब्राह्मण का अर्थ है : समर्पण। क्षत्रिय का अर्थ है : संकल्प। क्षत्रिय लड़ता है; जीतने की चेष्टा करता है, लेकिन एक न एक दिन हारेगा। क्योंकि व्यक्ति की सीमा चुक जाएगी। समष्टि के सामने व्यक्ति का क्या मुकाबला है! जितनी दूर तक व्यक्ति की ऊर्जा जा सकती है, जाएगा; फिर ठहर जाएगा। ___ वहीं से ब्राह्मण शुरू होता है। अपनी सारी सामर्थ्य लगा दी, तब उसे पता चलता है कि मुझसे भी बड़ा कोई है। मैं लडूं क्यों! उसका सहारा क्यों न ले लूं! मैं नदी से संघर्ष क्यों करूं? मैं नदी के साथ बहने क्यों न लगू? समर्पण शुरू होता है। ब्राह्मण की दशा समर्पण की दशा है। वह परमात्मा के साथ अपना संबंध जोड़ लेता है।
जब कोई किसी गुरु से अपना संबंध जोड़ता है, तो ब्राह्मण होने की शुरुआत हुई। इस आदमी को यह बात दिखायी पड़ गयी कि मेरे हाथ से जितना हो सकता था, मैंने कर लिया; अब मुझे विराट का प्रसाद चाहिए। अब मुझे परमात्मा का सहारा चाहिए। अब मुझे अपनी असहाय अवस्था का बोध होता है। इस स्थिति में व्यक्ति ब्राह्मण बनना शुरू होता है। ___और जब समग्र समर्पण हो जाता है, जब सब भांति व्यक्ति अपने को विसर्जित कर देता है असीम में; सीमाएं खो जाती हैं; जैसे बूंद सागर में गिर जाए, ऐसे जब कोई विराट में गिर जाता है; और उस गिरने में ही जानता है विराट के स्वाद को-तब पूरा ब्राह्मण हुआ। तब फूल लगे; फल लगे। तब सुगंध बिखरी। तब कोई कृत-संकल्प हुआ, कृतकार्य हुआ। तब पहुंच गया वहां, जहां पहुंचना था। नियति
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