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________________ एस धम्मो सनंतनो शूद्र का यही अर्थ है। वक्कलि शूद्र था, जैसे कि सभी लोग शूद्र होते हैं। ध्यान में ले लेना। ऐसा मत सोचना कि वक्कलि शूद्र था और तुम शूद्र नहीं हो। हम सब शूद्र की तरह ही पैदा होते हैं। और कोई पैदा होने का उपाय नहीं है। बड़े से बड़ा ब्राह्मण-बुद्ध भी-शूद्र की तरह ही पैदा होते हैं। थोड़े से धन्यभागी, जहां पैदा होते हैं, उससे आगे बढ़ते हैं। अधिक अभागे, जहां पैदा होते हैं, वहीं अटके रह जाते हैं। जो जन्म पर ही अटककर रह गया है, वह जीवन से, जानने से वंचित ही रहा। बहुत कम लोग हैं, जो जन्म के बाद बढ़ते हैं। जन्म के बाद बढ़ना चाहिए। जन्म तो सिर्फ शुरुआत है, अंत नहीं है। जन्म तो यात्रा का पहला कदम है, मंजिल नहीं है। जन्म तो सिर्फ अवसर है जीने का, जीवन को जानने का। इस अवसर को लेकर ही मत बैठ जाना। जन्म तो कोरी किताब है। लिखोगे कब इस पर? तुम्हारा मीत कब फैलेगा इस पर? तुम्हारे चित्र कब बनेंगे इस पर? जन्म तो ऐसे है, जैसे अनगढ़ पत्थर। छेनी कब उठाओगे? इस पत्थर को मूर्ति कब बनाओगे? इस पत्थर में प्राण कब डालोगे? अधिक लोग अनगढ़ पत्थर की तरह पैदा होते, अनगढ़ पत्थर की तरह मर जाते। उनकी मूर्ति निखर ही नहीं पाती। उनके भीतर जो छिपा था, छिपा ही रह जाता है। जो गीत गाया जाना था, बिन गाया चला जाता। जो नृत्य होना था, नहीं हो पाता। जो अपना गीत गा लेता है, वही बुद्ध है। जो अपना नाच नाच लेता है, वही बुद्ध है। जो अपनी भीतर छिपी हुई संभावनाओं को अभिव्यक्त कर देता है, अभिव्यंजित कर देता है, गुनगुना लेता है, वही बुद्ध है। और वही कृतकार्य है। वही फल को, फूल को उपलब्ध हुआ। अधिक लोग बीज की तरह मर जाते हैं। कुछ थोड़े से लोग अंकुरित होते हैं और मर जाते हैं। कुछ थोड़े से लोग वृक्ष भी बन जाते हैं, लेकिन उनमें कभी फूल नहीं लगते, फल नहीं लगते और मर जाते हैं। जब फूल खिलता है तुम्हारे जीवन का, जब तुम्हारी चेतना सहस्रदल कमल बनती, तभी जानना कि ब्राह्मण हुए-तभी जानना कि ब्राह्मण हुए। इसे ऐसा समझो कि सभी लोग शूद्र की तरह पैदा होते हैं, फिर शूद्र के बाद दूसरा कदम है वैश्य का। कुछ लोग वैश्य बन जाते हैं। वैश्य का मतलब है, पौधा पैदा हुआ; बीज फूटा, कुछ अंकुर निकले। __शूद्र बिलकुल ही देह में जीता है। मन का भी उसे पता नहीं; आत्मा की तो बात ही दूर। परमात्मा का तो सवाल ही कहां उठता है! तुम सोचते हो कि शूद्र वह है, जो मल-मूत्र ढोता है। तो तुम गलत हो। शूद्र वह है, जो मल-मूत्र में जीता है। ढोने से क्या होता है? बड़ी उलटी बात समझ ली। ___ जो आदमी पाखाने साफ करता है, मरे जानवरों को ढोकर ले जाता है— इसको 146
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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