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एस धम्मो सनंतनो जानता है। तथाकथित ब्राह्मण, जो जन्म से ब्राह्मण है, उसमें और तथाकथित शुद्र में भेद क्या है ? इतना ही भेद है कि ब्राह्मण वेद को जानता है; शूद्र वेद को नहीं जानता है। इसलिए हिंदुओं ने शूद्र को वेद नहीं पढ़ने दिया, नहीं तो ब्राह्मण की प्रतिष्ठा क्या रहेगी? शूद्र भी अगर पढ़े, तो ब्राह्मण हो गया!
अगर शास्त्र को जानना ही एकमात्र ब्राह्मण होने की परिभाषा है, तो जो शास्त्र को जान लेगा, वही ब्राह्मण हो गया। डाक्टर अंबेडकर को ब्राह्मण कहोगे कि नहीं? अगर शास्त्र को जानना ही परिभाषा हो, तो डाक्टर अंबेडकर ब्राह्मणों से ज्यादा बेहतर ब्राह्मण हैं। तभी तो इस देश का विधान बनाते समय ब्राह्मणों को नहीं बुलाया गया। अंबेडकर को निमंत्रित किया गया। अंबेडकर विधि का, शास्त्र का ज्ञाता था। भारतीय संस्कृति की अपूर्व पकड़ थी, समझ थी। बड़े-बड़े ब्राह्मण थे, उन्हें न बुलाकर एक शूद्र से भारत का विधान निर्मित करवाना किस बात की सूचना है?
शास्त्र पढ़ने का मौका हो, शास्त्र कोई जान ले, तो फिर कौन शूद्र ? कौन ब्राह्मण? यह बात बिगड़ जाएगी, इस डर से ब्राह्मणों ने शद्र को जानने ही नहीं दिया शास्त्र को। __स्त्रियों को भी नहीं जानने दिया; क्योंकि पुरुष की अकड़ का फिर कोई कारण न रह जाएगा। और जब तुम जानने ही न दोगे...।
अब यह बड़े मजे की बात है। यह कैसा अन्याय है! जब शूद्र पढ़ ही न सकेगा, पढ़ने ही न दोगे, वह अज्ञानी रह जाएगा, फिर कहोगे कि शूद्र अज्ञानी होते हैं। ब्राह्मण ज्ञानी, शूद्र अज्ञानी! और यह शूद्र का अज्ञान तुम्हारे ही द्वारा नियोजित, आयोजित
अज्ञान है। ___ न कोई शूद्र है, न कोई ब्राह्मण। पढ़ने से कुछ भेद तय नहीं होता। अगर भेद तय होगा, तो कोई अंतर-क्रांति से तय होगा।
बुद्ध किसको ब्राह्मण कहते हैं? बुद्ध उसको ब्राह्मण कहते हैं, जिसने ब्रह्म को जाना। लेकिन ब्रह्म को जन्म से कैसे जानोगे? ब्रह्म को जानने के लिए तो सारा जीवन दांव पर लगाना होगा। पराक्रम से जानोगे। ब्रह्म उपलब्धि है। अथक चेष्टा से...। शायद एक जन्म भी काम न आए। अनेक जन्मों में श्रम करके, समथा को साधकर, समाधि को उपलब्ध करके, अंतर के चक्षु खुलेंगे; ब्रह्म का दर्शन होगा-तब तुम ब्राह्मण होओगे।
यह घटना कहती है : वक्कलि स्थविर श्रावस्ती में ब्राह्मण-कुल में उत्पन्न हुए थे। लेकिन रहे होंगे शूद्र। रूप पर अटक गए। शरीर पर अटक गए। बुद्ध में भी उत्सुक हुए, तो उनके देह-सौंदर्य के कारण! बुद्ध में उत्सुक हुए, तो सिर्फ बाहरी छटा को देखकर! बुद्ध के पास आकर भी बुद्धत्व के दर्शन न हुए। वहां भी देह ही दिखी।
हम वही देख सकते हैं, जो देखने की हममें क्षमता होती है। तुमने देखा, चमार रास्ते पर बैठता है! वह तुम्हारा चेहरा नहीं देखता, तुम्हारा जूता देखता है। दिनभर
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