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________________ एस धम्मो सनंतनो करना चाहता हूं। मैं करूं या न करूं ? आपसे इसलिए पूछने आया हूं कि आप भुक्तभोगी हैं। सुकरात को इस दुनिया की खतरनाक से खतरनाक औरत मिली थी; झेनथेप्पे उसका नाम था। मगरमच्छ कहना चाहिए, स्त्री नहीं । मारती थी सुकरात को ! सुकरात जैसा प्यारा आदमी! मगर परमात्मा अक्सर ऐसे प्यारे आदमियों की बड़ी परीक्षाएं ता है। भेजी होगी झेनथेप्पे को— कि लग जा इसके पीछे! - मारती थी। डांटती थी। बीच-बीच में आ जाती । सुकरात अपने शिष्यों को समझा रहे हैं, वह बीच में खड़ी हो जाती - कि बंद करो बकवास ! एक बार तो उसने लाकर पूरी की पूरी केतली गरम पानी की— चाय बना रही थी; क्रोध आ गया— सुकरात समझा रहा होगा कुछ लोगों को, उसने पूरी केतली उसके सिर पर आकर उंडेल दी। सुकरात का चेहरा सदा के लिए जल गया। आधा चेहरा काला पड़ गया । तो उस युवक ने पूछा : इसीलिए आपसे पूछने आया हूं कि आप भुक्तभोगी हैं; आप क्या कहते हैं? विवाह करूं या न करूं ? सुकरात ने कहा : करो। अगर स्त्री अच्छी मिली, तो सुख पाओगे। अगर मेरी जैसी स्त्री मिली, दार्शनिक हो जाओगे । लाभ ही लाभ है। अब तुम कह रहे हो कि कुरूप स्त्री ... ! कुरूप स्त्री पर ध्यान अगर करो, तो विराग - भाव पैदा होगा । विरागी हो जाओगे | चूको मत अवसर। अगले जन्म में कहीं भूल चूक से सुंदर स्त्री मिल जाए, तो झंझटें आएंगी। मुल्ला नसरुद्दीन शादी करता था, तो गांव की सबसे कुरूप स्त्री को चुन लिया। लोग बड़े चौंके। धन है उसके पास, पद है, प्रतिष्ठा है। सुंदर से सुंदर स्त्रियां उसके पीछे दीवानी थीं। और इस नासमझ ने सबसे ज्यादा कुरूप स्त्री को चुन लिया । जिसकी कि गांव के लोग विवाह की संभावना ही नहीं मानते थे — कि कौन इससे विवाह करेगा! कौन अपने को इतना कष्ट देना चाहेगा? उस स्त्री की तरफ देखना भी घबड़ाने वाला था ! मुल्ला ने जब शादी कर ली, तो लोगों ने पूछा कि यह तुमने क्या किया ! उसने कहा : इसके बड़े लाभ हैं। इसको देख-देखकर मैं संसार की असारता का विचार करूंगा। इसको देख-देखकर बुद्ध जैसे व्यक्तियों के वचन मेरे खयाल में आएंगे कि सब असार है। यहां कुछ सार नहीं है । और दूसरा : यह कुरूप स्त्री है; इसकी वजह से मैं सदा निश्चित रहूंगा। सुंदर स्त्री का कोई भरोसा नहीं है। लोग उसके प्रेम में पड़ जाएं; वह किसी के प्रेम में पड़ जाए! इस पर मैं हमेशा निश्चित रहूंगा। दो-चार साल भी चला जाऊं कहीं, कोई फिकर नहीं । घर आओ, अपनी स्त्री अपनी है। और सुंदर स्त्रियां बाहर से जितनी सुंदर होती हैं, उतनी भीतर से कुरूप हो जाती 136
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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