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________________ राजनीति और धर्म आठवां प्रश्नः भगवान, बौद्ध-साहित्य कहता है। भगवान श्रावस्ती में विहरते थे। जैन-साहित्य कहता है: भगवान श्रावस्ती में ठहरे थे। विहरना और ठहरना-इन अलग शब्दों के उपयोग के पीछे क्या प्रयोजन है? कैसा आश्चर्य कि उपरोक्त प्रश्न देने के पूर्व ही कल उसका उत्तर आ गया-आपके मुख से! | पूछा है अमृत बोधिधर्म ने। बोधिधर्म का ध्यान निरंतर गहरे जा रहा है। बोधिधर्म निरंतर डूब रहे हैं। इस जीवन के जुही के फूल सूखने के पहले वे पा लेंगे, इसकी पूरी संभावना दिखती है। जैसे-जैसे तुम्हारा ध्यान गहरा होने लगेगा, वैसे-वैसे तुम्हारे प्रश्न तुम न भी पूछो, तो मुझ तक पहुंचने लगेंगे। ध्यान गहरा न हो, तो तुम पूछो भी तो शायद ही मुझ तक पहंचे। ध्यान गहरा न हो, तो तुम पूछ भी लो, मुझ तक पहंच भी जाएं, तो शायद मैं उत्तर न दूं। ध्यान गहरा न हो, तुम पूछ भी लो, मैं उत्तर भी दूं, तो तुम तक न पहुंचे। और शायद तुम तक पहुंच भी जाए, तो तुम उसे समझ न पाओ। समझ लो, तो कर न पाओ। हजार बाधाएं हैं-ध्यान न हो तो। और ध्यान हो-तुम न भी पूछो, तो मुझ तक पहुंच जाएगा। बहुत से ऐसे प्रश्नों के मैं उत्तर देता हूं, जो तुमने नहीं पूछे हैं। लेकिन कोई पूछना चाहता था। किसी ने मुझसे भीतर-भीतर पूछा था। कोई मेरे कानों में गुनगुना गया था। कागज पर लिखकर नहीं भेजा था। जैसे-जैसे तुम्हारा ध्यान गहरा होगा, वैसे-वैसे तुम्हें यह अनुभव में आने लगेगा। तुम्हारा प्रश्न—इसके पहले कि तुम पूछो–उसका उत्तर तुम्हें मिल जाएगा। मिल ही जाना चाहिए; नहीं तो तुम्हारे मेरे पास होने का प्रयोजन क्या है! आखिरी प्रश्नः .मेरी पत्नी बहुत कुरूप है। मैं क्या करूं? | गजब के प्रश्न पूछते हो! अब मैं कोई प्लास्टिक सर्जन थोड़े हूं। अगर पत्नी कुरूप है, तो ध्यान करो पत्नी पर-लाभ ही लाभ होगा। सुंदर स्त्री खतरे में ले जाए; कुरूप स्त्री कभी खतरे में नहीं ले जाती। इस मौके को चूको मत। सुकरात से किसी ने पूछा...। एक युवक आया। उसने कहाः मैं विवाह 135
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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