SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजनीति और धर्म देखते हैं न कल नंगलकुल अपने आप ही बुद्ध हो गया! ऐसे तुमने अपने आप वीणा तोड़ ली। किसी ने तोड़ी-वोड़ी नहीं है; तुमने खुद ही गुस्से में पटक दी। तुम खुद ही तोड़-फोड़ लिए हो। और यह हो सकता है-अक्सर ऐसा होता है कि तुम जिसके लिए तोड़-फोड़ लिए हो वीणा, उसे पता भी न चला हो। यह जगत कठोर है। यहां हृदय नहीं हैं; यहां पाषाण हैं। बू-ए-गुल, रौशनी रंग, नग्मा, सबा हर हंसी चीज है मेरे जज्बात के कत्ल से आशना। सिर्फ तुमको नहीं इल्म इस कत्ल का! मेरा दिल, मेरा महबूब, मासूम दिल ओढ़कर दाइमी दूरियों का कफन दर्द के बेअमां दश्त में दफ्न है आज भी मेरी हर मुज्तरिब सांस है उस पे नौहाकनां! आज भी याद है मुझको उस गर्म दोपहर का सानिहा जब तुम्हारी मुहब्बत के छतनारे से मेरा दिल, मेरा महबूब, मासूम दिल एक प्यासे परिंदे की सूरत गिरा और मेरी तरफ इक नजर देख कर इस तरह मर गया जैसे इस कत्ल, इस मर्गे-नागाह में मेरा भी हाथ था! सिर्फ तुमको नहीं इल्म इस कत्ल का! बू-ए-गुल, रौशनी, रंग, नग्मा, सबा हर हंसी चीज है मेरे जज्बात के कत्ल से आशना। फूलों को पता है, चांद-तारों को पता है कि मेरा कत्ल हो गया है, कवि कह रहा है। सिर्फ तुमको नहीं 133
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy