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एस धम्मो सनंतनो
तुम जिस दरवाजे पर गए थे, वह गलत था। अब ठीक दरवाजे पर खड़े हो। और अब डर रहे हो! संकोच खा रहे हो!
मन का यह वासंती मौसम सिर्फ तुम्हारे नाम। रंगी-रंगी-सी पाखुड़ियां हैं बगिया है मदहोश
और कहानी कहते-कहते दर्द हुआ खामोश कजरारी आंखों का सावन सिर्फ तुम्हारे नाम। मन का यह वासंती मौसम...। भोली कलियों को गंधों ने कर डाला बदनाम खूब लिखे खत पुरवैया ने फूलों को गुमनाम अलसाए सपनों का दर्पण सिर्फ तुम्हारे नाम। मन का यह वासंती मौसम...। अंधियारे का दामन थामे रही ऊंघती रात सुख-दुख दोनों आज यहां हैं सजा रहे बारात रंग भरे गीतों का सरगम सिर्फ तुम्हारे नाम।
मन का यह वासंती मौसम...। ऐसा गीत तुमने किसी क्षणभंगुर देह और रूप के सामने गाया था; अब यह गीत परमात्मा के सामने गाओ।
मन का यह वासंती मौसम
सिर्फ तुम्हारे नाम। तुमने बहुत चिट्ठियां लिखीं-और-और नामों पर। उन नामों ने तुम्हें कुछ दाद न दी। उनके कुछ और मंसूबे रहे होंगे, कुछ और इरादे रहे होंगे। अब इस बात को लेकर रोते मत रहो। अब इस बात को लेकर बैठे मत रहो। शायद तुम जिस स्त्री के लिए रुके हो, उसे याद भी न हो कि तुमने कभी उसे प्रेम किया था। शायद उसे पता भी न चला हो कि किसी ने अपने आप ही अपनी वीणा तोड़ ली!
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