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राजनीति और धर्म
है। मगर यह थोड़े ही मृत्यु है। यह आदमी अब ठंडा हो गया, यही देखोगे। मगर इसके भीतर क्या हुआ? इसके भीतर जो चेतना थी, कहां गयी? उसने कहां पंख फैलाए? वह किस आकाश में उड़ गयी? वह किस द्वार से प्रविष्ट हो गयी? किस गर्भ में बैठ गयी? वह कहां गयी? क्या हुआ?
उसका तो तुम्हें कुछ भी पता नहीं है। वह तो वही आदमी कह सकता है। और मुर्दे कभी लौटते नहीं। जो मर गया, वह लौटता नहीं। और जो लौट आते हैं, उनकी तुम मानते नहीं। जैसे बुद्ध यही कह रहे हैं कि मैंने ध्यान में वह सारा देख लिया जो मौत में देखा जाता है।
इसलिए तो ज्ञानी की कब्र को हम समाधि कहते हैं, क्योंकि वह समाधि को जानकर मरा। उसने ध्यान की परम दशा जानी। ___ इसलिए तुमने देखाः हम संन्यासी को जलाते नहीं, गड़ाते हैं। शायद तुमने सोचा ही न हो कि क्यों! गृहस्थ को जलाते हैं, संन्यासी को गड़ाते हैं। क्यों? क्योंकि गृहस्थ को अभी फिर पैदा होना है। उसकी देह जल जाए, यह अच्छा। क्योंकि देह के जलते ही उसकी आत्मा की जो आसक्ति इस देह में थी, वह मुक्त हो जाती है। जब जल ही गयी; खतम ही हो गयी; राख हो गयी—अब इसमें मोह रखने का क्या प्रयोजन है? वह उड़ जाता है। वह नए गर्भ में प्रवेश करने की तैयारी करने लगता है। पुराना घर जल गया, तो नया घर खोजता है। ___संन्यासी तो जानकर ही मरा है। अब उसे कोई नया घर स्वीकार नहीं करना है। पुराने घर से मोह तो उसने मरने के पहले ही छोड़ दिया। अब जलाने से क्या सार? अब जले-जलाए को जलाने से क्या सार! अब मरे-मराए को जलाने से क्या सार? इस आधार पर संन्यासी को हम जलाते नहीं, गड़ाते हैं। __ और संन्यासी की हम समाधि बनाते हैं। उसकी कब्र को समाधि कहते हैं। इसीलिए कि वह ध्यान की परम अवस्था समाधि को पाकर गया है। वह मृत्यु को जीते जी जानकर गया है कि मृत्यु झूठ है। . जिस दिन मृत्यु झूठ हो जाती है, उसी दिन जीवन भी झठ हो जाता है। क्योंकि वह मृत्यु और जीवन हमारे दोनों एक ही भ्रांति के दो हिस्से हैं। जिस दिन मृत्यु झूठ हो गयी, उस दिन जीवन भी झूठ हो गया। उस दिन कुछ प्रगट होता है, जो मृत्यु
और जीवन दोनों से अतीत है। उस अतीत का नाम ही परमात्मा है; जो न कभी पैदा होता, न कभी.मरता; जो सदा है।
सातवां प्रश्न:
मैं प्रेम में सब समर्पित कर देना चाहता था, पर यह नहीं हुआ,
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