SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो तेरा कमाल मेरे इम्तिहां से पहले था मेरी नजर ने तेरे नक्शे-पा में देखा था जमाले-कहकशां कहकशां से पहले था छुपेगा ये तो फिर ऐसा ही एक उभरेगा इसी तरह का जहां इस जहां से पहले था तज्जलियात से रौशन है चश्मे-शौक मगर कहां वो जल्वा जो नामो-निशां से पहले था सब था पहले ऐसा ही। फिर-फिर ऐसा ही होगा। यह दुनिया मिट जाएगी, तो दूसरी दुनिया पैदा होगी। यह पृथ्वी उजड़ जाएगी, तो दूसरी पृथ्वी बस जाएगी। तुम इस देह को छोड़ोगे, तो दूसरी देह में प्रविष्ट हो जाओगे। तुम इस चित्तदशा को छोड़ोगे, तो नयी चित्तदशा मिल जाएगी। तुम अज्ञान छोड़ोगे, तो ज्ञान में प्रतिष्ठित हो जाओगे; मगर मिटेगा कुछ भी नहीं। मिटना होता ही नहीं। सब यहां अविनाशी है। अमृत इस अस्तित्व का स्वभाव है। मृत्यु है ही नहीं। इसलिए मजबूरी है; तुम्हारे प्रश्न का उत्तर न दे सकूँगा कि मृत्यु क्या है? क्योंकि जो है ही नहीं, उसकी परिभाषा कैसे करें! जो है ही नहीं, उसकी व्याख्या कैसे करें? ऐसा ही है, जैसे तुमने रास्ते पर पड़ी रस्सी में भय के कारण सांप देखा। भागे। घबड़ाए। फिर कोई मिल गया, जो जानता है कि रस्सी है। उसने तुम्हारा हाथ पकड़ा और कहाः मत घबड़ाओ, रस्सी है। तुम्हें ले गया; पास जाकर दिखा दी कि रस्सी है। फिर क्या तुम उससे पूछोगेः सांप का क्या हुआ? ___नहीं; तुम नहीं पूछोगे कि सांप का क्या हुआ? बात खतम हो गयी; सांप था ही नहीं। क्या हुआ का सवाल नहीं है। क्या तुम उससे पूछोगेः अब जरा सांप के संबंध में समझाइए! वह जो सांप मैंने देखा था, वह क्या था? वह तुम्हारी भ्रांति थी। वह बाहर कहीं था ही नहीं। रस्सी के रूप-रंग ने तुम्हें भ्रांति दे दी; सांझ के धुंधलके ने तुम्हें भ्रांति दे दी; तुम्हारे भीतर के भय ने तुम्हें भ्रांति दे दी। सारी भ्रांतियों ने मिलकर एक सांप निर्मित कर दिया। वह तुम्हारा सपना था। __ मृत्यु तुम्हारा सपना है। कभी घटा नहीं। घटता मालूम होता है। और इसलिए भ्रांति मजबूत बनी रहती है कि जो आदमी मरता है, वह तो विदा हो जाता है। वही जानता है कि क्या है मृत्यु जो मरता है। तुम तो मर नहीं रहे। तुम बाहर से खड़े देख रहे हो। ___ एक डाक्टर मुझे मिलने आए थे। वे कहने लगेः मैंने सैकड़ों मृत्युएं देखी हैं। मैंने कहा: गलत बात मत कहो। तुमने मरते हुए लोग देखे होंगे; मृत्युएं कैसे देखोगे? मृत्यु तुम कैसे देखोगे? तुम तो अभी जिंदा हो! तुमने सैकड़ों मरते हुए लोग देखे होंगे, लेकिन मरते हुए लोग देखने से क्या होता है! तुम क्या देखोगे बाहर? यही देख सकते हो कि इसकी सांस धीमी होती जाती है; कि धड़कन डूबती जाती 126
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy