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राजनीति और धर्म
सकते हैं, तो फिर इलेक्ट्रान, न्यूट्रान, पाजिट्रान रह जाएंगे। और पतली रेत हो गयी! मगर नष्ट कुछ नहीं हो रहा है। सिर्फ रूप बदल रहा है।
विज्ञान कहता है : पदार्थ अविनाशी है। विज्ञान ने पदार्थ की खोज की, इसलिए पदार्थ के अविनाशत्व को जान लिया। धर्म कहता है : चेतना अविनाशी है; क्योंकि धर्म ने चेतना की खोज की और चेतना के अविनाशत्व को जान लिया।
विज्ञान और धर्म इस मामले में राजी हैं कि जो है, वह अविनाशी है।
मृत्यु है ही नहीं। तुम पहले भी थे; तुम बाद में भी होओगे। और अगर तुम जाग जाओ, अगर तुम चैतन्य से भर जाओ, तो तुम्हें सब दिखायी पड़ जाएगा जो-जो तुम पहले थे। सब दिखायी पड़ जाएगा, कब क्या थे।
बुद्ध ने अपने पिछले जन्मों की कितनी कथाएं कही हैं! तब ऐसा था। तब ऐसा था। तब वैसा था। कभी जानवर थे; कभी पौधा थे; कभी पशु थे; कभी पक्षी। कभी राजा; कभी भिखारी। कभी स्त्री; कभी पुरुष। बुद्ध ने बहुत कथाएं कही हैं।
वह जो जाग जाता है, उसे सारा स्मरण आ जाता है। मृत्यु तो होती ही नहीं। मृत्यु तो सिर्फ पर्दे का गिरना है।
तुम नाटक देखने गए। पर्दा गिरा। क्या तुम सोचते हो, मर गए सब लोग जो पर्दे के पीछे हो गए! वे सिर्फ पर्दे के पीछे हो गए। अब फिर तैयारी कर रहे होंगे। मूंछ इत्यादि लगाएंगे; दाढ़ी वगैरह लगाएंगे; लीप-पोत करेंगे। फिर पर्दा उठेगा। शायद तुम पहचान भी न पाओ कि जो सज्जन थोड़ी देर पहले कुछ और थे, अब वे कुछ और हो गए हैं ! तब वे बिना मूंछ के थे; अब वे मूंछ लगाकर आ गए हैं। शायद तुम पहचान भी न पाओ।
बस, यही हो रहा है। इसलिए संसार को नाटक कहा है, मंच कहा है। यहां रूप बदलते रहते हैं। यहां राम भी रावण बन जाते हैं और रावण भी राम बन जाते हैं। ये पर्दे के पीछे तैयारियां कर आते हैं। फिर लौट आते हैं; बार-बार लौट आते हैं।
तुम पूछते होः 'मृत्यु क्या है?' मृत्यु है ही नहीं। मृत्यु एक भ्रांति है। एक धोखा है।
सरूरे-दर्द गुदाजे-फुगां से पहले था । सरूदे-गम मेरे सोजे-बयां से पहले था मैं आबोगिल ही अगर हूं बकौदे-शमो-सहर तो कौन है जो मकानो-जमां से पहले था ये कायनात बसी थी तेरे तसव्वर में वजूदे हर दो जहां कुन फिकां से पहले था अगर तलाश हो सच्ची सवाल उठते हैं यकीने-रासिखो-महकम गुमां से पहले था तेरे खयाल में अपना ही अक्से-कामिल था
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