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________________ एस धम्मो सनंतनो है। तब तो वे सब, जो खोजने में संलग्न हो गए थे, खड़े हो गए। उन्होंने कहाः हद्द हो गयी! तेरे साथ हम भी पागल बन रहे हैं। अगर सुई घर के भीतर गिरी है, तो यहां किसलिए खोज रही है? तेरा होश खो गया! पागल हो गयी है ? बुढ़ापे में सठिया गयी है? राबिया ने कहाः नहीं; मैं वही कर रही हूं, जो सारी दुनिया करती है। सुई तो भीतर गिरी है, लेकिन भीतर रोशनी नहीं है—गरीब औरत; दीया नहीं है-बाहर रोशनी थी, तो मैंने सोचा, बाहर ही खोजूं। जहां रोशनी है, वहीं खोजूं लोग कहने लगेः यह तो हमारी समझ में आता है कि बिना रोशनी के कैसे खोजेगी। लेकिन जब गिरी ही नहीं है सुई यहां, तो यहां कैसे खोजेगी? उसने कहाः यही तो मेरी समझ में नहीं आता। तुम सबको भी मैं बाहर खोजते देखती हूं। और जिसे तुम खोज रहे हो, वह भीतर बैठा हुआ है! शायद जिस कारण से मैं सुई बाहर खोज रही हूं, उसी कारण से तुम भी बाहर खोज रहे हो। आंखों की रोशनी बाहर पड़ती है; हाथ बाहर फैलते हैं; कान बाहर सुनते हैं। सारी रोशनी इंद्रियों की बाहर पड़ती है। शायद इसीलिए आदमी बाहर खोजने निकल जाता है। और फिर बाहर का तो कोई अंत नहीं है; खोजते जाओ, खोजते जाओ। पृथ्वी चुक जाए, तो हिमालय के शिखरों पर खोजो। हिमालय के शिखर चुक जाएं, तो चांद पर खोजो। अब मंगल पर खोजो। और बढ़ते जाओ! और बढ़ते जाओ! कोई अंत नहीं है इस ब्रह्माण्ड का। खोजते-खोजते समाप्त हो जाओगे। और मजा यह है कि जिसे तुम खोज रहे थे, वह तुम्हारे भीतर बैठा हंस रहा है। 'तेरो तेरे पास है, अपने माहिं टटोल।' टटोल शब्द भी बड़ा अच्छा है। क्योंकि इंद्रियां तो बाहर हैं; भीतर अंधेरा है; टटोलना पड़ेगा। समझो कि राबिया अगर भीतर खोजे अपनी सुई, तो दिखायी तो कुछ नहीं पड़ेगा। बैठ जाएगी जमीन पर और टटोलेगी। अंधेरा है, लेकिन अगर सुई जहां गिरी है, वहां अंधेरे में भी टटोली जाए, तो मिल सकती है। और जहां गिरी ही नहीं है, वहां हजार सूरज खड़े हों, सब रोशन हो, तो भी कैसे मिलेगी? ____टटोलना शब्द को खयाल रखना। टटोलने का मतलब होता है: पक्का पता नहीं है, कहां है। दिखता कुछ नहीं। सब अंधेरा है। ____ ध्यान जब तुम करते हो, तब तुम्हें लगेगा सदा : अंधेरा हो गया। किसी ने पूछा है एक प्रश्न कि आप कहते हैं : भीतर जाओ; आप कहते हैं : आत्म-दर्शन करो। जब भी मैं ध्यान करता हूं, तो अंधेरा ही अंधेरा दिखायी पड़ता है! ठीक हो रहा है। ध्यान शुरू हो गया। अंधेरा दिखायी पड़ने लग गया, बड़ी घटना घट गयी। चलो, कुछ तो दिखायी पड़ा। भीतर का अंधेरा भी बाहर की रोशनी से बेहतर है। चलो, कुछ तो हाथ लगा। अंधेरा सही। आज अंधेरा हाथ लगा है, 122
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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