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राजनीति और धर्म
पांचवां प्रश्नः
तेरो तेरे पास है, अपने माहिं टटोल। राई घटै न तिल बढ़े, हरि बोलौ हरि बोल॥ भगवान, इस पद का भाव समझाने की कृपा करें।
इस पद का वही भाव है, जो कल बुद्ध की कथा का भाव था। अत्ता हि अत्तनो
- नाथो-आदमी अपना मालिक खुद है; स्वयं अपना मालिक है। और जब तक यह सत्य दिखायी न पड़ जाए, तब तक व्यर्थ ही भिखारी बना रहता है-व्यर्थ ही, अकारण ही।
तुम भिखारी बने हो, भिखारी होने के कारण नहीं; तुम्हें एक सत्य का स्मरण भूल गया है कि तुम मालिक हो–अत्ता हि अत्तनो नाथो-तुम अपने मालिक स्वयं हो।
'तेरो तेरे पास है...।'
जिसकी तुम खोज कर रहे हो, उसे तुम साथ ही लेकर आए हुए हो; उसे तुमने कभी खोया ही नहीं।
फिर लाओत्सू का प्रसिद्ध वचन है कि जो खो जाए, वह धर्म नहीं है। जो न खोए, वही तो स्वभाव है; वही धर्म है।
मुझसे लोग पूछते हैं : ईश्वर को खोजना है! मैं उनसे पूछता हूं: कब खोया? कहां खोया? अगर खोया ही नहीं है, तो खोजने जाओगे तो भटक जाओगे। क्योंकि जिसे खोया ही नहीं, उसे खोजोगे कैसे!
ईश्वर को खोजना नहीं होता; सिर्फ जागकर देखना पड़ता है अपने भीतर; वहां वह मौजूद है। . - 'तेरो तेरे पास है...।'
जिसको तुम तलाश रहे हो, वह तुम्हारे भीतर है। चूक रहे हो, क्योंकि बाहर तलाश रहे हो।
राबिया के जीवन की प्रसिद्ध कथा है। एक सांझ लोगों ने देखा कि वह घर के बाहर कुछ खोज रही है। बूढ़ी औरत, बूढ़ी फकीरन! पास-पड़ोस के लोग आ गए। वे भी कहने लगे कि हम साथ दे दें। क्या खो गया? उसने कहाः मेरी सुई गिर गयी है। वे भी खोजने लगे।
सूरज ढलने लगा। रात उतरने लगी। सुई जैसी छोटी चीज; बड़ा रास्ता; कहां खोजें? एक समझदार आदमी ने कहा कि राबिया, सुई गिरी कहां है? ठीक-ठीक जगह का कुछ पता हो, तो शायद मिल जाए। ऐसे तो कभी नहीं मिलेगी। रास्ता बड़ा है; और अब तो रात भी उतरने लगी!
राबिया ने कहाः वह तो पूछो ही मत कि कहां गिरी! सुई तो घर के भीतर गिरी
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