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राजनीति और धर्म
नहीं है। तुम नग्न खड़े हो जाओगे सब घर-द्वार छोड़कर, पत्नी-बच्चे-सुविधाएं छोड़कर; उपवास करोगे; भूखे रहोगे; शरीर को गलाओगे-मगर भीतर एक ही वासना रहेगी कि दुनिया जान ले कि मुझसे बड़ा त्यागी कोई भी नहीं है। ___ इसमें कुछ फर्क नहीं है। यह वही का वही खेल है। तुम अभी भी दूसरों में उत्सुक हो; दूसरे जान लें कि मैं कौन हूं!
जब तक तुम्हारी उत्सुकता दूसरे में है—कि दूसरा मुझे जान ले कि मैं कौन हूं-तब तक तुम राजनीतिज्ञ हो; राजनीति में होओ या न होओ। जिस दिन तुम सोचोगे, बदलोगे अपनी यात्रा को, कहोगे कि पहले मैं तो जान लूं कि मैं कौन हूं। __ और दूसरा जानेगा ही कैसे मुझे? कोई तो मेरे भीतर नहीं जा सकता, सिवाय मेरे। कोई तो मझे नहीं देख सकता, सिवाय मेरे। लोग तो मुझे बाहर से ही देखेंगे। मेरी रूप-रेखा देखेंगे, मेरी अंतरात्मा तो नहीं। मैं ही कहां दूसरों की अंतरात्मा देख पाता हूं? लोगों का रूप-रंग देख लेता हूं; चेहरा देख लेता हूं; कपड़े देख लेता हूं; धन-पद-प्रतिष्ठा देख लेता हूं; लेकिन भीतर कौन विराजमान है, वह तो मुझे भी नहीं दिखायी पड़ता। तो कोई मेरे भीतर जाकर कैसे देख सकेगा! वहां तो जाने के लिए सिर्फ एक को ही आज्ञा है-वह मैं हूं। वहां तुम अपने संगी-साथी को भी नहीं ले जा सकते; अपने प्रेमी को भी नहीं ले जा सकते।
और पहले मैं तो जान लूं कि मैं कौन हूं; फिर अगर कोई जानेगा मुझे, तो समझ में पड़ने वाली बात है। लेकिन जो अपने को जान लेता है, उसे दूसरों को जनाने की आकांक्षा ही समाप्त हो जाती है। उसे तो मिल गया परमधन। उसे तो मिल गया परमपद। उसे अब कोई जाने न जाने, उसे चिंता ही नहीं है। वह विचार ही समाप्त हो गया। वह जाग गया। सपने के बाहर आ गया।
राजनीति एक सपना है सोए हुए आदमी का। धर्म जागरण की कला है।
राजनीति से मुझे कुछ लेना-देना नहीं है। और कभी-कभी मैं राजनीतिज्ञों के खिलाफ कुछ कह देता हूं, उससे भी तुम यह मत समझ लेना कि मैं उनके खिलाफ हूं। वह तो केवल उदाहरण है। उनसे व्यक्तिगत रूप से मुझे कुछ लेना-देना नहीं है। वे नहीं होंगे तो कोई और होगा उनकी जगह। इतने रुग्ण लोग हैं दुनिया में कि क्या फर्क पड़ता है। इंदिरा नहीं, तो मोरारजी होंगे। मोरारजी नहीं, तो कोई और आ जाएंगे। कोई न कोई होगा। इतने बीमार लोग हैं, और इतने पद के आकांक्षी हैं! कोई न कोई होगा। ___ इससे क्या फर्क पड़ता है, कौन कुर्सी पर बैठा है! कोई न कोई नासमझ बैठेगा। नासमझों में जो सबसे ज्यादा नासमझ होगा, वह बैठेगा। क्योंकि यह दौड़ ऐसी है कि इसमें समझदारों का काम नहीं है। ___मुल्ला नसरुद्दीन एक दुकान पर कुछ सामान खरीदने गया था। कोई त्यौहार के दिन थे और दुकानदार ने चीजों के दाम काफी कम कर दिए थे। कम किए हों या न
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