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________________ राजनीति और धर्म जब तक तुम इस बात को सिद्ध करने में लगे हो दुनिया के सामने कि मैं कुछ हूं, तब तक एक बात ही सिद्ध होती है कि तुम भीतर जानते हो कि मैं ना-कुछ हूं। नहीं तो सिद्ध ही क्यों करोगे? लाओत्सू का प्रसिद्ध वचन है : जो सिद्ध करने चलता है, वह सिर्फ अपने को असिद्ध करता है। जो दूसरे को अपने मत में रूपांतरित करना चाहता है, लाओत्सू ने कहा है, वह सिर्फ इतना ही बताता है कि उसे खुद भी अपने मत पर भरोसा नहीं है। __ क्या मतलब है लाओत्सू का? और लाओत्सू जैसी आंखें कभी-कभी होती हैं। बड़ी गहरी आंख है। लाओत्सू का वचन है : वन हू ट्राइज टु कनव्हिन्स, डज नाट कनव्हिन्स। उसी चेष्टा में कि मैं सिद्ध कर दूं कि मैं यह हूं, साफ हो रहा है कि इस आदमी को खुद ही भरोसा नहीं है कि यह है; नहीं तो सिद्ध करने की क्या जरूरत! जिसको साफ हो गया कि मैं कौन हूं, वह मस्ती से चलता है। उसे कुछ सिद्ध नहीं करना है। वह सिद्ध हो ही गया। उसको ही हमने सिद्ध कहा है। .. राजनीतिज्ञ सिद्ध करने की कोशिश करता है और सिद्ध नहीं कर पाता। और सिद्ध सिद्ध है; सिद्ध करने की कोशिश नहीं करनी.पड़ती। राजनीति हीनता की ग्रंथि से पैदा होती है। पश्चिम का एक बड़ा मनोवैज्ञानिक हुआ है एडलर। उसने सारे मनोविज्ञान को हीनता की ग्रंथि पर ही खड़ा किया है। पद का आकांक्षी सिर्फ इतना ही बताता है कि मैं भीतर दीन हूं, मुझे बड़े सिंहासन पर बिठाओ। मैं भीतर बहुत डरा हुआ हूं। मुझे ऐसे सिंहासन पर बिठाओ कि मैं दुनिया के ऊपर दिखायी पड़ सकू! तुम्हारे बड़े से बड़े राजनीतिज्ञ बड़ी हीनताओं से घिरे होते हैं। मैंने सुना है : एक छोटे कद का नेता...और नेता सभी छोटे कद के होते हैं। चाहे शरीर का कद बड़ा भी हो; भीतर का कद छोटा होता है। सब नेता लालबहादुर शास्त्री होते हैं! सब। नहीं तो नेता ही नहीं होंगे। . एक छोटे कद का नेता भाषण दे रहा था। भीड़ में से आवाज आयी : आप नजर नहीं आ रहे हैं! खड़े होकर भाषण दीजिए। नेता ने कहाः मैं खड़े होकर ही भाषण कर रहा हूं। भीड़ में से फिर आवाज आयी : अच्छा हो, कृपा-करके मेज पर खड़े हो जाइए। महोदय! नेता ने कहा : मैं मेज पर ही खड़ा हुआ हूं। नेता छोटे कद का होता ही है। उसके भीतर ही उसे साफ है कि मैं ना-कुछ। इसलिए बाहर प्रमाण जुटा रहा है कि देखो मेरी शक्ति! मेरा धन! मेरा पद! देखो मुझे! वह तुम्हें थोड़े ही समझा रहा है। वह अपने को भी समझा रहा है। वह यह कर रहा है कोशिश कि जब इतने लोग मुझे मानते हैं, तो जरूर मुझमें कुछ होना चाहिए। नहीं तो इतने लोग मुझे मानते क्यों! जब इतने लोग मुझे पूजते हैं, इतनी फूल-मालाएं आती 117
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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