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एस धम्मो सनंतनो
कहानियां कहती हैं कि मोहम्मद चलते हैं रेगिस्तान में, तो एक बादल उनके ऊपर छाया करता है। किस बादल को पड़ी है! बादलों को इतना बोध कहां? और अगर हो, तो सोचो तो कितना अपमान हो गया तुम्हारा! बादल छाया करें मोहम्मद पर! और आदमियों ने क्या किया? आदमियों ने मोहम्मद की छाया छीन लेनी चाही; जीवन छीन लेना चाहा।
अब तुम कहोगे: इसका इतिहास में प्रमाण नहीं है! मैं भी नहीं कह रहा हूं। इसका इतिहास से कुछ लेना-देना नहीं है। यह बात बड़ी महिमा की है। यह काव्य है; और इसमें इंगित हैं, सूचनाएं हैं।
इसमें यह सूचना दी गयी है कि होना तो यही चाहिए कि बादल भी मोहम्मद पर छाया करें। मोहम्मद जैसा आदमी हो और बादल छाया न करें। और होता यह है कि आदमी भी मोहम्मद को मारने को उत्सुक हो जाते हैं।
कहानियां कहती हैं कि बुद्ध जब जंगलों में आते, तो सूखे वृक्षों में हरियाली आ जाती; बेमौसम फूल खिल जाते।
होना यही चाहिए। बुद्ध आएं, तो बेमौसम खूब फूल खिल जाना चाहिए। फिर क्या खाक मौसम की फिक्र किए बैठे हो? बुद्ध का आगमन हुआ। किसी वृक्ष के नीचे आकर बैठ गए। और वृक्ष कह रहा है कि जब वसंत आएगा, तब खिलूंगा। यह बात जंचती है? ___ वसंत आ गया-यह मतलब हुआ कहानी का। बुद्ध आ गए, तो वसंत आ गया। अब और किस वसंत की प्रतीक्षा है? इससे बड़ा वसंत और कब आएगा? बुद्ध के पास तो आदमियों के फूल खिल जाते हैं। यही तो वसंत है। .
कहानी यह कह रही है कि खिल जाने चाहिए फूल। अब और किस वसंत की प्रतीक्षा है ? मालिक आ गया; तुम नौकरों की प्रतीक्षा कर रहे हो!
मगर मैं यह नहीं कह रहा हूं कि फूल खिले। आदमी नहीं खिले, तो फूल क्या खिलेंगे! ये काव्य हैं। ये महाकाव्य हैं। पुराण गणित की भाषा में नहीं लिखा जाता। पुराण काव्य की भाषा में लिखा जाता है। पुराण गणित की भाषा मानता ही नहीं। पुराण भाव की भाषा मानता है। __ अब अगर मैं तुमसे कह दूं कि यह इतिहास का कूड़ा-करकट तुम्हारी खोपड़ी में भरा है, इसे जलाओ, इसे कचरे-घर में डाल आओ, तो तुम कहोगे, मैंने कठोर उत्तर दे दिया।
यह कठोर नहीं है महाराज ! मेरा वश चले, तो तुम्हारा सिर उतार लूं। यह कठोर नहीं है। तुम्हारा सिर किसी काम का नहीं है। नाहक उछल-कूद कर रहे हो। नाहक परेशान हो रहे हो। यह सिर गंवा दो, तो तुम्हें सब मिल जाए। यही सिर तुम्हारे और परमात्मा के बीच बाधा बना है। ___ लेकिन तुम पूछते हो : 'आप कभी-कभी बड़ा कठोर उत्तर देते हैं!'
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