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________________ राजनीति और धर्म दूसरा प्रश्न: आप कभी-कभी बड़ा कठोर उत्तर क्यों देते हैं? जैसा प्रश्न, वैसा उत्तर। या जैसा प्रश्नकर्ता, वैसा उत्तर। और फिर कभी-कभी कठोरता की जरूरत होती है करुणा के कारण भी। कभी-कभी तुम्हारे सिर पर चोट पड़े, तो ही तुम्हें थोड़ा सा होश आता है। तुम ऐसी गहरी नींद में सोए हो! डर तो यह है कि तुम चोट को भी पी जाओगे और न जागोगे। तुम्हारा पूछना किस भावदशा में होता है; किस जगह से आता है तुम्हारा प्रश्न; क्यों तुमने पूछा है-वह ज्यादा महत्वपूर्ण है मुझे, बजाय तुम्हारे प्रश्न के। कोई सिर्फ इसलिए पूछता है कि वह अपना पांडित्य दिखाना चाहता है। अब जैसे यही प्रश्न कि कबीर और मीरा का मिलन ऐतिहासिक नहीं है। अब यहां कोई इतिहास के अंधे आ गए, जो क्षुद्र का इतिहास पढ़ते रहे हैं-राजा-राजाओं की, रानियों की कहानियां पढ़ते रहे हैं; युद्धों की कहानियां पढ़ते रहे हैं और जिनको तारीखें इत्यादि काफी याद हो गयी हैं। इनके सिर में कचरा भर गया। अब ये कुछ और नहीं देख सकते! अब उनको हर चीज जब तक क्षुद्र के साथ प्रमाणित न हो, तब तक अर्थहीन हो जाती है। अब इनको बड़ी कठिनाई होगी। ये समझ ही न पाएंगे विराट को। और अगर समझेंगे, तो ऐसी मांगें करेंगे कि वे मांगें बाधा खड़ी करेंगी। अब जैसे कहानियां कहती हैं...। कहानियां हैं, इतिहास में प्रमाण हो भी नहीं सकता। कहते हैं : महावीर चलते हैं रास्तों पर, तो जो कांटे सीधे पड़े होते हैं, महावीर को देखकर जल्दी से उलटे हो जाते हैं। ___ अब यह कहीं होता है? कांटे इतनी फिक्र करते हैं? आदमी फिक्र नहीं करते; कांटे क्या खाक फिक्र करेंगे! .. यह कभी हुआ तो नहीं होगा। कांटे रास्तों पर पड़े; महावीर आते हैं; यह देखकर कि कहीं चुभ न जाऊं, जल्दी से उलटे हो जाते हैं। सिर छिपाकर धूल में घुस जाते हैं। कांटे ऐसा करेंगे? लेकिन इस कहानी में बड़ा अर्थ है। कहानी यह कह रही है कि कांटों को भी ऐसा करना चाहिए। महावीर जैसा व्यक्ति आता हो...। यह अपेक्षा है कहानी की कि होना तो ऐसा चाहिए कि रास्ते पर पड़े कांटे भी उलटे हो जाएं। और होता यह है कि रास्ते पर खड़े आदमी भी पत्थर मारते हैं! यह कहानी में अपेक्षा है; इस कहानी में तुम्हारे लिए इंगित है, सूचना है कि महावीर के रास्ते पर कांटे मत बनना। वहां तो कांटों को भी उलट जाना चाहिए। लेकिन तुम भी कांटे बन जाओगे महावीर के रास्ते पर। आदमी कांटे हो जाते हैं! 111
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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