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________________ एस धम्मो सनंतनो भारतीय भी अब भारतीय नहीं हैं। वे भी जब पुराण पढ़ते हैं, तो उनकी दृष्टि भी पुराण की नहीं है। वे कहते हैं : यह इतिहास नहीं है। कहा किसने कि यह इतिहास है! इतिहास शब्द का अर्थ समझते हो? जिसकी इति आ जाए, और जिसका हास हो जाए। जिसका अंत आ जाता है जल्दी और जो धूल में खो जाता है—यह इतिहास का अर्थ होता है। ___पुराण का क्या अर्थ होता है? जो सदा से चला आया है और सदा चलता रहेगा-पुर+आण। आता ही रहा है-आता ही रहा है-चलता ही रहा है जो शाश्वत है, सनातन है। उसे पकड़ने के लिए कुछ और उपाय है। __इसलिए जब मैं तुमसे कुछ कहता हूं, तो स्मरण रखना ः उस कहने में इतिहास इत्यादि की बकवास नहीं है। मैं उस इतिहास से बिलकुल मुक्त हूं। मैं तो तुमसे वही कह रहा है, जिसके होने की शाश्वत सत्यता है। घटा हो, न घटा हो। न घटा होगा, तो घटेगा कभी। लेकिन तुम्हारा मन इन व्यर्थ की बातों में घूमता रहता है। तुम सोचते हो : शायद घटता, तो मूल्य बढ़ जाएगा। कैसे बढ़ेगा मूल्य ? समझो कि सच में ही कबीर एक सौ बारह साल जी गए। और कबीर जैसे लोगों का भरोसा क्या-जी जाएं! एक सौ बारह साल जी जाएं, तो मीरा से मिलना हो जाए। तो फिर क्या मूल्य बढ़ जाएगा कहानी का! क्या मूल्य बढ़ेगा? इतनी ही बात के जुड़ने से-कि हां, सच में ही एक भवन में काशी के पंद्रह सौ पंडित इकट्ठे हुए थे। फिर कबीर ने मीरा को बुलाया। मीरा नाची। इससे क्यो फर्क पड़ेगा? क्या कहानी अपने आप में पूरी नहीं है? प्रकारांतर से यह प्रमाण जुटा लेने से क्या कहानी का अर्थ कुछ गहरा हो जाएगा? कुछ भी तो भेद नहीं पड़ेगा। कहानी का अर्थ तो कहानी में है। घटी हो, न घटी हो। न घटी हो, तो घटनी चाहिए थी। न घटी हो, तो अभी कभी घटेगी। यहां न घटी हो, तो कहीं और घटी होगी। इस जमीन पर नहीं, तो किसी और जमीन पर। जमीनों पर नहीं, तो कहीं स्वर्ग में। लेकिन घटी होगी। घटेगी। घटती रहेगी। जब भी कबीर पैदा होंगे, मीराएं पुकारी जाएंगी। और जो कबीर मीरा को न पुकारे, वह कुछ अधूरा-अधूरा है; भयभीत है। कबीर के साथ और भय को जोड़ना ठीक नहीं होगा। और जिसको यह दिखायी न पड़ जाए कि स्त्री में भी वही ज्योति, पुरुष में भी वही ज्योति; जिसे यह स्त्री-पुरुष का वर्ग-भेद याद रह जाए, वह कबीर कैसा? उसमें बुद्धत्व ही नहीं है अभी। अभी देह पर अटका है; अभी आत्मा का पता नहीं चला है। देह से स्त्री हो कोई, पुरुष हो कोई, लेकिन यह देह की भाषा है। कबीर को तो देह के पार दिखायी पड़ना चाहिए। देह के भीतर जो छिपा है, उस पारदर्शी का दर्शन होना चाहिए। कबीर को तो दिखना चाहिए कि कौन पुरुष? कौन स्त्री? एक का ही विस्तार है। एक ही मौजूद है। 110
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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