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राजनीति और धर्म
प्रमाण न हो। कृष्णमूर्ति का क्या प्रमाण होगा? अखबारों में खोजने से नाम भी तो नहीं मिलेगा! प्रमाण होगा जोसेफ स्टैलिन का। प्रमाण होगा माओ-त्से-तुंग का। प्रमाण होगा मुसोलिनी का। लेकिन कृष्णमूर्ति का क्या प्रमाण होगा? दो हजार साल बाद कृष्णमूर्ति ऐसे ही संदिग्ध हो जाएंगे, जैसे आज कृष्ण हो गए। कोई फर्क नहीं रहेगा।
जितनी ऊंची बात होती है, उतने ही कम प्रमाण छूटते हैं। क्योंकि ऊंची बात आकाश की होती है; नीची बात जमीन की होती है। नीची बात जमीन पर सरकती है; उसकी लकीरें छूटती हैं। ऊंची बात आकाश में उड़ती है। आकाश में उड़ने वाले पक्षियों के कोई पद-चिह्न तो नहीं बनते! पक्षी उड़ गया, फिर कोई पद-चिह्न नहीं मिलते। लेकिन जमीन पर जो चलते हैं, उनके जाने के बाद भी पद-चिह्न छूट जाते हैं। उनके जाने के बाद भी प्रमाण होता है।
इतिहास क्षुद्र की बात कहता है। इसलिए तो इस देश को एक नयी चीज खोजनी पड़ी; उसको हम पुराण कहते हैं। पुराण बड़ा महिमावान है। दुनिया में कहीं भी पुराण जैसी धारणा नहीं है।
पुराने शास्त्र कहते हैं, इतिहास और पुराण। पुराण का अर्थ इतिहास नहीं होता। पुराण कुछ और है। पुराण का मतलब होता है : ऐसी बात, जिसका इतिहास कोई लेखा-जोखा नहीं रखेगा। नहीं रख सकेगा। नहीं कोई उपाय है इतिहास के पास। इतिहास तो लेखा-जोखा रखता है राजनीति का, टुटपुंजियों का, जिनका कोई मूल्य नहीं है। लेकिन घड़ीभर जो मंच पर आते हैं और बड़ा शोरगुल मचा देते हैं; घड़ीभर के लिए उनकी गूंज व्याप्त हो जाती है-घड़ीभर के लिए।
इतिहास तो जो घडीभर के लिए बड़े प्रभावशाली मालूम पड़ते हैं, उनका अंकन कर लेता है। पुराण उनका अंकन करता है, जो सदा-सदा के लिए महिमाशाली हैं।
अब इसमें दोनों में फर्क होने वाला है। जो सदा-सदा के लिए महिमाशाली है-एस धम्मो सनंतनो-उसको पहचानने में हजारों साल लग जाते हैं; उसका इतिहास कैसे बनाओगे! इतिहास तो उसका बनता है, जिसको तुम अभी पहचान लेते हो। बुद्ध को तो अभी भी पहचाना नहीं गया! कबीर से तो अभी भी जान-पहचान कहां हुई तुम्हारी! अभी भी कबीर खड़े हैं; अभी समझे जाने को हैं; अभी पहचाने जाने को हैं।
हजारों साल बीत जाते हैं, तब...। और तब भी कुछ लोग ही केवल पहचान पाते हैं, क्या है. बुद्धत्व। तब तक बुद्ध खो चुके; देह न रही; देह के प्रमाण न रहे। जब तक पहचानने वाले लोग आते हैं, तब तक सब चिह्न खो जाते हैं। - इसलिए हमने-सिर्फ हमने दुनिया में पुराण जैसी चीज खोजी। पुराण का अर्थ होता है : समय की धारा पर जिसके चिह्न नहीं छूटते; शाश्वत से जिसका संबंध है, उसका भी उल्लेख हमें करना चाहिए, उसको भी हमें संगृहीत करना चाहिए।
पश्चिम के जो लोग भारत के पुराण पढ़ते हैं, उनकी दृष्टि पुराण की नहीं है।
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