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________________ राजनीति और धर्म ही महावीर से ज्यादा महिमा की स्त्री रही होगी। नहीं तो स्त्री होकर तीर्थंकरों में गिनी नहीं जा सकती थी। महिमा कुछ ऐसी रही होगी कि पुरुष भी इनकार कर नहीं सका। ज्योति कुछ इतनी ज्योतिर्मय रही होगी कि स्त्री होते हुए भी स्वीकार करना पड़ा होगा। तेईस तीर्थंकर पुरुष हैं; उसमें एक स्त्री चौबीसवीं-मल्लीबाई! उस समय तो स्वीकार कर लिया होगा। उसकी मौजूदगी का बल! उसकी मौजूदगी का दबाव। लेकिन पीछे पुरुष के अहंकार को चोट लगी होगी कि स्त्री और तीर्थंकर! स्त्री और इतनी ऊंचाई पाले! और शास्त्र तो कहते हैं कि स्त्री पर्याय से मोक्ष ही नहीं हो सकता। वे पुरुषों के लिखे हुए शास्त्र हैं, जो कहते हैं कि स्त्री पर्याय से मोक्ष नहीं हो सकता। कोई भी स्त्री सीधे स्त्री-देह से मोक्ष नहीं जा सकती। पहले मरे; पुरुष बने दूसरे जन्म में; फिर जा सकती है। पुरुष हुए बिना मोक्ष जाने का कोई द्वार नहीं है। यह बड़ी बेहूदी बात है; अभद्र बात है। मगर पुरुषों का राज्य रहा। पुरुष मालिक रहे। स्त्रियों को पढ़ने की आज्ञा नहीं; समझने की आज्ञा नहीं; सोचने की आज्ञा नहीं! ___ और एक स्त्री तीर्थंकर हो गयी, तो फिर शास्त्रों का क्या होगा, जो कहते हैं: स्त्री पर्याय से मोक्ष नहीं है! उन्होंने कहानी को बदल दिया। एक छोटी सी तरकीब लगायी; एक कानूनी व्यवस्था जुटा ली; एक टेक्निकल तरकीब खोज ली। मल्लीबाई को मल्लीबाई मत कहो; मल्लीनाथ कहो। एक स्त्री कभी उस महिमा को प्रगट भी की थी, तो हमने उसका नाम मिटा दिया। ___ कबीर की कहानी में इतनी ही बात है कि पंद्रह सौ पंडित काशी में इकट्ठे हुए हैं और उन्होंने कबीर को निमंत्रित किया है कि आप आओ। वे गए। उन्होंने देखा ः सब पुरुष हैं। लौट गए। उन्होंने कहा : मीरा को बुलाओ। मीरा नाचे, तो कबीर भी आए। मीरा नाचे, तो कबीर भी बोले। ___ जहां स्त्री नहीं है, वहां कुछ अधूरा है। वहां मातृत्व नहीं है; वहां प्रेम नहीं है। तर्क होगा; सिद्धांत-जाल होगा। पांडित्य होगा। आचरण भी हो सकता है। चरित्र भी हो सकता है। लेकिन उस चरित्र में सुगंध नहीं होगी। उस चरित्र में माधुरी नहीं होगी; मस्ती नहीं होगी। वहां लोग ज्ञानी होकर पत्थरों की तरह हो जाएंगे। वहां बहाव नहीं होगा। तुमने देखा ः एक कमरे में दस पुरुष बैठे हों, हवा और होती है। फिर एक स्त्री कमरे में आ जाए, हवा और हो जाती है। सिर्फ उसकी मौजूदगी से तनाव कम हो जाता है। लोग ज्यादा हंसने लगते हैं। लोग विवाद कम करते हैं। लोग अभद्र शब्दों का उपयोग नहीं करते। लोग गाली-गलौज बंद कर देते हैं! पंद्रह स्त्रियां बैठी हों, तो भी बड़ी तू-तू मैं-मैं होती है। क्षुद्र बातों पर निंदा का रस चलता है; निंदा-रस बहता। एक पुरुष आ जाए, बात सम्हल जाती है। स्त्री और पुरुष एक ही सत्य के दो पहलू हैं; एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। और अब तक हमने चूंकि सिक्के के एक ही पहलू को स्वीकार किया, पुरुष को, 107
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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