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________________ एस धम्मो सनंतनो कहानी का मूल्य उसकी अंतर-कथा में है; उसकी अंतर्भावना में है। न मिले हों इस पृथ्वी पर–छोड़ो! स्वर्ग में पंद्रह सौ ज्ञानी इकट्ठे हुए हों और कबीर को बुलाया हो। और कबीर ने कहा हो कि जब तक मीरा न आएगी-या सहजो, या दया, या राबिया, या थेरेसा, या लल्ला-तब तक मैं न आऊंगा। __कहानी का अर्थ इतना है कि जहां सिर्फ पुरुष ही पुरुष हैं, वहां कुछ अधूरा है। जहां पुरुष ही पुरुष हैं, वहां कुछ कठोर हो जाता है; परुष हो जाता है। स्त्री के आते ही थोड़ा सा माधुर्य आता है। स्त्री के आते ही थोड़ा गीत आता है, थोड़ा संगीत आता है। स्त्री के आते ही अध्यात्म में थोड़े फूल खिलते हैं। नहीं तो अध्यात्म मरुस्थल हो जाता है। ____ चूंकि अध्यात्म के सभी शास्त्र पुरुषों ने लिखे हैं, इसलिए शास्त्र रूखे-सूखे हैं। चूंकि स्त्रियां मंदिरों, मस्जिदों, सिनागाग से वर्जित रही हैं, इसलिए धर्म मुर्दे की तरह जीया है। धर्म में प्राण आ जाएंगे।... कहानी का अर्थ है कि कबीर यह कह रहे हैं कि स्त्री और पुरुष का समान मूल्य है। एक। इसलिए मीरा को बुलाओ तभी मैं आऊंगा। दूसरा ः स्त्री और पुरुष की ऊर्जा जहां संयुक्त होकर नाचती है, वहां परिपूर्णता का वास होता है। पुरुष आधा है, स्त्री आधी है। दोनों जहां मिलते हैं, वहां पूर्ण का जन्म होता है। न तो पुरुष अकेला बच्चे को जन्म दे सकता है, न स्त्री अकेली बच्चे को जन्म दे सकती है। जीवन फलता है तब, जब दो का मिलन होता है। दो विपरीत ऊर्जाएं जब एक-दूसरे में गिरती हैं, तो तीसरी ऊर्जा का जन्म होता है। अध्यात्म बांझ रह गया है, क्योंकि पुरुष ही पुरुष की ऊर्जा है। मुझसे लोग पूछते हैं कि कोई स्त्री तीर्थंकर क्यों नहीं है? कोई स्त्री अवतार क्यों नहीं है? कोई स्त्री ईश्वर की पुत्र क्यों नहीं है? कोई स्त्री पैगंबर क्यों नहीं है? वे ठीक पूछते हैं। स्त्रियां इस योग्य हुई हैं, जो पैगंबर होनी चाहिए, जो अवतारों में गिनी जानी चाहिए, जिनकी गिनती तीर्थंकरों में होनी चाहिए, लेकिन पुरुष का अहंकार नहीं होने देता गिनती। ___उस पुरुष के अहंकार पर चोट है कहानी में। उस कहानी का इतना ही अर्थ है कि कबीर यह कह रहे हैं कि मैं पुरुष के अहंकार को भरने को राजी नहीं हूं। स्त्री की महिमा उतनी ही है, जितनी पुरुष की। उसकी ऊंचाई उतनी ही हो सकती है, जितनी पुरुष की। लेकिन मीरा को या सहजो को तीर्थंकर की तरह स्वीकार करना तो दूर, जैनों में एक स्त्री तीर्थंकर हो गयी, उसका नाम जैनों ने बदल दिया है कि पता न चले किसी को कि वह स्त्री थी। नाम था, मल्लीबाई; जैन कहते हैं, मल्लीनाथ। पुरुष की तरह गिनती कर दी। बात अखरी होगी। स्त्री रही होगी अपूर्व महिमा की। निश्चित 106
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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